- गुजारा भत्ते की रकम तय करते समय रिश्ते में महिला की लाइफस्टाइल क्या थी, इस पर जरूर ध्यान दिया जाएं
- भले ही महिला प्रोफेशनली क्वालिफाइड है, लेकिन ध्यान रखें कि उसे दोबारा काम शुरू करना आसान नहीं होगा
पति-पत्नी के बीच विवाद घर-घर की कहानी है। विवाद फिर न सुधरने वाले रिश्तों की ओर बढ़ते हैं। तब तलाक, भरण-पोषण भत्ते या मेंटेनेंस अलाउंस की नौबत आती है। मामले फैमिली कोर्ट, जिला अदालतों और मजिस्ट्रेट कोर्ट तक जाते हैं और यही वजह है कि इन अदालतों में हजारों की संख्या में केस चल रहे हैं। इतना ही नहीं, संतुष्ट न होने पर केस हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाते हैं और वहां भी लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजरते हैं।
जितने लोग, उतने ही कानून। हर मामला कुछ नई कहानी बयां करता है। लेकिन मूल में शादी और उसकी वजह से होने वाला तनाव ही होता है। अलग-अलग अदालतों ने इतने फैसले सुना दिए हैं कि वकीलों तक को याद रखना मुश्किल हो जाता है। इस व्यवस्था को स्ट्रीम लाइन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 4 नवंबर 2020 को गाइडलाइन जारी की।
जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी की बेंच ने इस गाइडलाइन के जरिए निचली अदालतों के लिए चेकलिस्ट बनाई। यह गाइडलाइन निचली अदालतों के लिए जितने काम की है, उतनी ही हर दिन कोर्ट-कचहरी का चक्कर काटने वाले लोगों के लिए भी। आइए सरल शब्दों में जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन किस तरह इन मामलों की सुनवाई में बदलाव लाएगी…
यह गाइडलाइन क्या है और किसके लिए है?
- सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। एक, फैमिली कोर्ट, जिला अदालतों या मजिस्ट्रेट कोर्ट के लिए। दूसरा, उन पति-पत्नी के लिए, जिनके बीच विवाद है।
निचली अदालतों के लिए क्या निर्देश हैं?
- सुप्रीम कोर्ट की कोशिश है कि शादी से जुड़े विवादों की सुनवाई में एकरूपता आएं। इस वजह से उसने गुजारा भत्ते या मेंटेनेंस अमाउंट को लेकर कुछ नियम तय किए हैं। इसके तहत गुजारा भत्ते से जुड़े मामले की सुनवाई से पहले अदालतों को दोनों पक्षों से संपत्तियों और दायित्वों की सूची बनाकर पेश करने को कहा है। इसके बाद गुजारा भत्ता तय करते समय किन बातों को ध्यान में रखा जाएं, यह भी बताया है।
गुजारा भत्ता तय करने का आधार क्या बनेगा?
- सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों से कहा है कि वे पीड़ित पक्ष की पीड़ा और जरूरतों को समझें और उसके अनुसार गुजारा भत्ते से जुड़े आदेश पारित करें। इसमें (1) दोनों पक्षों की उम्र और रोजगार, (2) निवास के अधिकार, (3) कामकाजी पत्नी के संबंध में, (4) छोटे बच्चों के गुजारा भत्ते, और (5) विकलांगता या स्थायी बीमारी पर विचार करने की नसीहत दी गई है।
- सुप्रीम कोर्ट ने अपनी गाइडलाइंस में कोई अमाउंट फिक्स नहीं किया है, बल्कि आउटलाइन तय की है। यह भी कहा है कि हर केस के लिए एक-सा फॉर्मूला तय नहीं कर सकते। यह केस-टू-केस आधार पर तय होना चाहिए। गुजारा भत्ते का फिक्सेशन अदालतों को अपने विवेक के आधार पर करना चाहिए।
- सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों से कहा कि यदि पत्नी पढ़ी-लिखी और प्रोफेशनली क्वालिफाइड है, लेकिन बच्चों या बुजुर्ग की देखभाल के लिए बरसों से घर पर ही रही है तो यह समझना चाहिए कि तत्काल उसे कोई रोजगार नहीं मिलने वाला। दोबारा वर्कफोर्स में शामिल होना आसान नहीं रहता। यदि पत्नी कामकाजी है और कमाती है तो यह देखना जरूरी है कि परिवार में रहते हुए जैसी लाइफस्टाइल उसकी थी, वह आगे भी कायम रहें।
- किसी भी महिला से उसके निवास के अधिकार को छीना नहीं जा सकता। घरेलू हिंसा कानून में उसे जॉइंट घर में रहने का अधिकार दिया था। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि भले ही घर पति का हो या उसके परिवार का, पत्नी को उसमें रहने का अधिकार है। फिर चाहे घर किराये का क्यों न हो। अदालतें पति (रिस्पॉन्डेंट) को पत्नी के रहने की वैकल्पिक व्यवस्था करने का निर्देश दे सकती हैं।
- बच्चों के गुजारा भत्ते को तय करते समय यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि सिर्फ खाने-पीने, कपड़ों, रहने, डॉक्टरी खर्चे, पढ़ाई की ही बात नहीं है, बल्कि कोचिंग क्लास और वोकेशनल कोर्सेस का खर्च भी महत्वपूर्ण है। यदि पत्नी कामकाजी है और ठीक-ठाक कमा रही है तो दोनों मिलकर भी बच्चे का खर्च उठा सकते हैं। इसी तरह पत्नी और बच्चे/बच्चों की विकलांगता या बीमारी पर ध्यान देना भी जरूरी है।
आवेदक (पीड़ित पक्ष) के लिए क्या नियम तय किए हैं?
- सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइंस में आवेदक के लिए भी नियम तय किए हैं। उसे यह बताना होगा कि उसने किस कानून के तहत किस अदालत में पहले से केस कर रखा है। दरअसल, समस्या यह आती है कि एक पक्ष कई मर्तबा झूठे केस या एक से अधिक कानूनों के तहत दूसरे पक्ष को परेशान करता है।
- नई व्यवस्था से कोर्ट को पता होगा कि आवेदक वाकई में पीड़ित है या सिर्फ परेशान करने के लिए केस कर रहा है। यदि किसी कोर्ट से गुजारा भत्ते को लेकर कोई आदेश आ चुका है और उसमें बदलाव करना है तो आवेदक को उसके बारे में बताते हुए अपना आवेदन देना होगा।
पीड़ित पक्ष को गुजारा भत्ता किस दिन से मिलेगा?
- गुजारा भत्ता किस दिन से शुरू किया जाए, इसे लेकर स्पष्ट आदेशों की कमी थी। इस वजह से सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि जिस दिन आवेदक गुजारा भत्ते के लिए आवेदन करेगा या करेगी, उसी दिन से मान्य होगा। जजमेंट कहता है कि गुजारा भत्ता आवेदन की तारीख से मिलना चाहिए क्योंकि मुकदमा कितना लंबा खींचेगा, यह आवेदक के हाथ में नहीं है।
यदि किसी ने गुजारा भत्ता समय पर नहीं चुकाया तो क्या होगा?
- सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में स्पष्ट कहा है कि यदि गुजारा भत्ते का आदेश हो चुका है तो हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 28A, घरेलू हिंसा कानून के सेक्शन 20(6) या CRPC के सेक्शन 128 के तहत संबंधित पक्ष पर भुगतान का दबाव बनाया जा सकता है। यदि इसके बाद भी वह गुजारा भत्ता नहीं चुकाता तो CPC के प्रावधानों (सेक्शन 51, 55, 58, 60) के तहत सिविल कोर्ट से मनी डिक्री यानी कुर्की की कार्यवाही की जा सकती है।साभार-दैनिक भास्कर
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