- 10वीं में अच्छे मार्क्स आए थे तो मां ने साइंस सब्जेक्ट दिलवा दिया, लेकिन बिना बताए स्ट्रीम चेंज कर कॉमर्स कर ली
- कंपनी शुरू की तो दो बार फेल हो गए थे, तीसरी बार में मिली सफलता, अब हर महीने 80-90 हजार बचा लेते हैं
22 साल के शौर्य गुप्ता का कुछ ही दिनों पहले ग्रेजुएशन कम्पलीट हुआ है। महज 17 साल की उम्र से उन्होंने खुद का काम शुरू कर दिया था। अभी उनकी कंपनी का 20 से 22 लाख रुपए का टर्नओवर है और वो 8 लोगों को रोजगार दे रहे हैं। कॉलेज में पढ़ाई के साथ शौर्य ने ये सब कैसे किया? जानिए शौर्य की कहानी, उन्हीं की जुबानी…
शौर्य कहते हैं- बचपन में ही सिर से पिता का साया उठ गया था। मां ने बड़ी मुश्किलों से पाला। वो एक फैक्ट्री में देखरेख का काम संभालती थीं। हम उसी फैक्ट्री में एक छोटे से घर में रहते थे। मां का एक ही सपना था कि, हम दोनों जुड़वां भाइयों को कैसे भी अच्छी एजुकेशन देना है। इसीलिए विपरीत हालातों के बावजूद उन्होंने हमारा एडमिशन नोएडा के प्राइवेट स्कूल में करवाया ताकि पढ़ाई अच्छी हो जाए।
उन्होंने बताया कि मां बचपन से ही कहा करती थीं कि मैं सिर्फ अच्छा पढ़ा-लिखा और खिला सकती हूं, बाकी तुम्हें अपनी जिंदगी खुद बनानी है। कुछ कमाओगे तो खा पाओगे, वरना सड़क पर घूमना पड़ेगा। मां की ये बातें सुनकर हम दोनों भाइयों के दिल में ये बात तो घर कर गई थी कि बड़ा आदमी तो बनना ही है और अपना ही कुछ करना है।
शौर्य कहते हैं- हम दोनों पढ़ाई में हमेशा एवरेज रहे, लेकिन क्रिएटिव मामलों में हमारा दिमाग खूब चलता था। 10वीं में अच्छे मार्क्स आए थे तो मां ने साइंस सब्जेक्ट दिलवा दिया, लेकिन मैंने उन्हें बिना बताए ही स्ट्रीम चेंज करके कॉमर्स कर ली। मुझे बिजनेस में ही इंटरेस्ट था। मैं यही सोचता रहता था कि कौन सा बिजनेस करूं? कैसे करूं? कुछ करने का पागलपन इतना था कि दोनों भाइयों ने स्कूल टाइम में ही एक दोस्त के साथ मिलकर वेबसाइट बना ली थी। हालांकि, उससे कुछ अर्निंग नहीं हुई और कुछ दिनों में वो बंद भी हो गई।
“12वीं में मेरे मार्क्स कम आए तो मुझे कॉमर्स के अच्छे कॉलेज में एडमिशन ही नहीं मिल रहा था। बीए में एडमिशन मिल रहा था। मां ने कहा, बीए कर लो, लेकिन मुझे कॉमर्स के अलावा कुछ नहीं पढ़ना था। मैंने किसी कॉलेज में एडमिशन ही नहीं लिया और 12वीं के बाद ही नौकरी की तलाश में लग गया। रोज इधर-उधर घूमता था कि कहीं तो काम मिले। सैकड़ों इंटरव्यू दे दिए। कंसल्टेंसी वालों ने पैसे भी लिए लेकिन नौकरी नहीं मिली। तभी मुझे पता चला कि जॉब के नाम पर फ्रॉड चल रहा है।”
वो कहते हैं- मैं नौकरी के लिए इतनी सारी कंपनियों में घूम चुका था कि मुझे पता था कहां वैकेंसी है और वहां किससे मिलना है? मैं अपने दोस्तों को बताया करता था कि तुम फलां कंपनी में जा सकते हो, वहां वैकेंसी है। इस दौरान मैं खुद भी कंपनियों के चक्कर लगा ही रहा था। तभी एक दिन एक कंपनी से फोन आया कि आपके कैंडीडेट का सिलेक्शन हो गया है। आप अपने 2500 रुपए ले जा सकते हैं। अपनी कंसल्टेंसी की डिटेल लेकर आ जाइएगा। मैं उनकी बात सुनकर शॉक्ड हो गया। उन्होंने फिर पूछा कि आप कंसल्टेंसी से हो न। मैंने उन्हें हां बोल दिया।
शौर्य ने बताया- अगले दिन मैं उस कंपनी में पेमेंट लेने पहुंचा तो उन्होंने कहा कि आपको अपनी कंपनी की डिटेल देना होगी। कंपनी अकाउंट में ही पैसे ट्रांसफर हो पाएंगे। बस यहीं से मेरे मन में आइडिया आया कि बाहर लोग इंटरव्यू कंडक्ट करवाने के कैंडीडेट से पैसे ले रहे हैं और यहां तो कंपनी खुद कैंडीडेट को भेजने के पैसे दे रही है तो क्यों न यही काम किया जाए। मैंने जॉबखबरी के नाम से अपनी कंसल्टेंसी खोलने का प्लान बनाया और रजिस्ट्रेशन करवा लिया। इसी बीच एक कॉलेज में मुझे बीबीए में एडमिशन भी मिल गया।
वो बताते हैं- मैं कैंडीडेट्स को जोड़ने के लिए पैम्पलेट बांटने लगा। एक बार चौराहे पर पैम्पलेट बांटते हुए एक दोस्त ने देख लिया। उसने मां और भाई को बता दिया। घर में बहुत डांट पड़ी, लेकिन मैंने सोच लिया था कि अब यही काम करना है। मैं कॉलेज जाता था और वहां से लौटकर पैम्पलेट बांटता था। दीवारों पर पर्चे चिपकाता था और कंपनियों में जाकर रिक्रूटमेंट संबंधित डिटेल जुटाता था। बहुत दिनों से ऐसा करते रहा। कई महीनों बाद एक और कैंडीडेट मुझे मिला। उसे एक कंसल्टेंसी में भेजा। वहां से मुझे पेमेंट मिला। फिर धीरे-धीरे कैंडीडेट्स मिलने लगे। चार कंपनियों में मेरे कॉन्टैक्ट थे, जहां मैं कैंडीडेट्स को भेज रहा था।
शौर्य ने कहा, “महीने के 18-20 हजार रुपए आने लगे तो मैंने सोचा कि एक एम्प्लॉई हायर कर लेता हूं, क्योंकि मैं कॉलेज भी जाता था। 15 हजार की सैलरी में एक लड़की को काम पर रख लिया। 5 हजार रुपए के किराये में एक छोटा सा ऑफिस रेंट पर ले लिया। हालांकि, उसने कोई मदद नहीं की और दो माह में ही काम बंद हो गया। कुछ महीनों बाद फिर काम शुरू किया। फिर दो लड़कियों को हायर किया, लेकिन वो मुझे बिना बताए कैंडीडेट्स से ही कमीशन लेने लगीं। बाद में पता चला तो उन दोनों हो हटा दिया और काम फिर बंद सा हो गया। तीसरी बार फिर शुरूआत की। एक आठवीं पास लड़की को हायर किया, जिससे कैंडीडेट्स से कॉल पर डिटेल लेनी थी। इस बार असफल नहीं हुआ। हमें अच्छा काम मिलने लगा।”
वो बताते हैं कि मैं दिनभर कॉलेज में रहता था। ऑफिस से काम चल रहा था। एक के बाद तीन एम्ल्पॉई और रखे। लॉकडाउन के पहले तक हमारी कंपनी का टर्नओवर 20 से 22 लाख रुपए पर पहुंच गया है। 8 लोगों का स्टाफ मेरे पास है। स्टाफ को सैलरी और किराया देने के बाद मैं 80 से 90 हजार रुपए बचा लेता हूं। कुछ माह पहले खुद के पैसों से कार भी खरीद ली।
उन्होंने कहा, “हाल ही में मेरा ग्रैजुएशन कम्पलीट हुआ है। अब हम बिजनेस ट्रेनिंग पर भी काम शुरू कर रहे हैं। कैंडीडेट्स में स्किल्स की बहुत कमी है, उनकी कमियों को दूर करेंगे और प्लेसमेंट भी करवाएंगे। दूसरों को बस यही मैसेज देना चाहता हूं कि आपके अंदर आग है तो उसे बुझने मत दो। लोग डराएंगे, लेकिन आप ने खुद को झोंक दिया तो सफलता जरूर मिलेगी।”साभार-दैनिक भास्कर
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