गाजियाबाद के करहेड़ा गांव में घुसते ही LIU यानी लोकल इंटेलीजेंस यूनिट के एजेंट नजर आते हैं, जो यहां आने-जाने वाले हर व्यक्ति का ब्योरा दर्ज कर रहे हैं। कुछ लोग बैठे हैं, जो धर्म परिवर्तन के बारे में पूछने पर खीझते हुए कहते हैं, ‘हां यहीं धर्म परिवर्तन हुआ है।’
वाल्मीकि मोहल्ले में सभी घर पक्के हैं। कुछ तीन-चार मंजिला भी हैं। घरों के बाहर हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीरों की टाइलें लगी हैं। मोहल्ले के बीचोंबीच एक वाल्मीकि मंदिर है, जिसके बाहर लोग जमा हैं। धर्म परिवर्तन के बारे में पूछने पर कोई कुछ नहीं बोलता। जिससे पूछो वो यही कहता है, ‘इस बारे में पवन भैया ही बात करेंगे।’
पवन के बारे में पूछने पर बताया जाता है कि ‘उनकी तबियत खराब है’ और वो आज नहीं मिल पाएंगे। यहां प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने घर के बाहर बैठी एक महिला कहती है, ‘हमने धर्म परिवर्तन नहीं किया है, कुछ ने किया है, उनसे ही पूछिए क्यों किया है।’
दरअसल, 14 अक्टूबर को बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के पड़पोते राजरतन अंबेडकर करहेड़ा पहुंचे थे और वाल्मीकि समुदाय के लोगों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दिलवाई थी। इस कार्यक्रम में 200 से ज्यादा लोग शामिल हुए थे। राजरतन के साथ तस्वीर खिंचवाने वाले और अब तक मीडिया में खुलकर धर्म परिवर्तन की बात स्वीकार करते रहे पवन के दादा सवालों से भागते नजर आए।
वो कहते हैं, ‘मैं एक ही बात बार-बार दोहराते हुए थक गया हूं। सबको दिख रहा है कि हमने क्यों धर्म परिवर्तन किया है।’ क्या अब उन पर कोई दबाव है? इस पर वो कहते हैं, ‘अब तो निर्णय हो गया है, अब क्या करा जाए। जो भी हो, उस निर्णय में कोई परिवर्तन नहीं होगा।
सारी जिंदगी कूड़ा ढोती रहीं बुजुर्ग अनारो देवी कहती हैं, ‘हम अपना धर्म नहीं बदलेंगे, जैसे हैं, वैसे ही रहेंगे। जो हमारे बड़े-बूढ़े करते आए हैं, वहीं करते रहेंगे। हम अपने गांव के चौहानों की, अपने किसानों की बुराई नहीं लेंगे।’
क्या कभी छुआछूत या भेदभाव महसूस किया? इस सवाल पर वो कहती हैं, ‘पहले हमें दूर से रोटी देते थे, छुआछूत करते थे। फिर इंदिरा गांधी ने छुआछूत खत्म करके बहुत अच्छा किया था। हमें बड़े लोगों के बराबर बिठा दिया था। गांव के सब लोग हमारा मान रखते हैं। न हम धरम बदलेंगे और न ही अपना करम बदलेंगे।’
अपना नाम खन्ना बताने वाले एक व्यक्ति कहते हैं, ‘अभी मैने धर्म परिवर्तन नहीं किया है, लेकिन विचार कर रहा हूं।’ वजह पूछने पर वो कहते हैं, ‘हाथरस में हमारी बेटी के साथ ज्यादती हुई, लेकिन इंसाफ नहीं मिला। हिंदू धर्म में हमें ना सम्मान मिल रहा है, न इंसाफ।’
यहां कुछ लोग दबी जुबान में और कुछ खुलकर कहते हैं कि हाथरस में हुए कथित गैंगरेप और पीड़ित परिवार के साथ हो रही ज्यादती के विरुद्ध लोगों ने धर्म परिवर्तन किया है।
अपना नाम न जाहिर करते हुए एक युवक कहता है, ‘मैंने धर्म नहीं बदला है, लेकिन मेरे पिता ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली है। कोई भी हिंदू संगठन हमें हिंदू मानने के लिए तैयार नहीं है। हिंदू हमें सिर्फ दंगों के समय याद करते हैं। हाथरस में हमारी बेटी के साथ ज्यादती हुई तो हमें हिंदू नहीं माना गया। ये अब हमारे सम्मान की बात है।’
वो कहते हैं, ‘बाकी जरूरतें तो हम मेहनत करके पूरा कर लेंगे, लेकिन हमें सम्मान ही नहीं मिलेगा तो भले ही हम 100 साल जिएं, उस जीवन का फायदा क्या है? जिस धर्म में हमारी बहन-बेटियों का सम्मान नहीं है, उसमें रहकर हम क्या करेंगे?’ वो बार-बार कहते हैं, ‘मीडिया वाले आते हैं, हमारी बात सुनते हैं, लेकिन हमारी बात को आगे नहीं बढ़ाते। ये भी तो भेदभाव ही है?’
वाल्मीकि समुदाय के इस समूह का नेतृत्व कर रहे पवन दवा लेने नहीं गए थे, दरअसल वो अब किसी से बात करना नहीं चाह रहे हैं। ये भरोसा हो जाने के बाद कि हम उनके पक्ष को जगह देंगे, वो कहते हैं, ‘लानत है हमारी ऐसी जिंदगी पर कि हमारी एक बेटी के साथ ऐसी वीभत्स घटना हुई और हम उसके लिए इंसाफ भी न मांग पाएं।’
पवन के खिलाफ स्थानीय थाने में शिकायत दी गई है। उन पर लोगों को भड़काने का आरोप है। पवन कहते हैं, ‘हमने इंसाफ के लिए आवाज उठाई तो हमारा संबंध पाकिस्तान से जोड़ दिया गया, हमें देशद्रोही तक बता दिया गया। क्या अपनी बहन के लिए इंसाफ मांगना देशद्रोह है?’
पवन दावा करते हैं कि 50 परिवारों के 236 लोगों ने धर्म बदला है और आगे और भी लोग धर्म परिवर्तन करेंगे। हालांकि, गाजियाबाद जिला प्रशासन ने धर्म परिवर्तन के दावों को खारिज किया है। क्या अब उन पर कोई दबाव है? पवन कहते हैं- बहुत तरह से दबाव भी पड़ रहा है और समर्थन भी मिल रहा है। प्रशासन के लोग आते हैं, कहते हैं सभी सुविधाएं देंगे, धर्म परिवर्तन की बात वापस करो। समुदाय के लोग भी दूर-दूर से आ रहे हैं और हमारा साथ दे रहे हैं। दोनों ही तरफ से दबाव है।
सुनीता के घर की दीवारों पर हाल ही में नीला रंग किया गया है। उनकी चौखट पर भगवान गणेश की मूर्ति लगी है। सुनीता और उनके पूरे परिवार ने बौद्ध धर्म अपनाया है। भगवान बुद्ध की बड़ी सी तस्वीर और धर्म बदलने का प्रमाण पत्र दिखाते हुए सुनीता कहती हैं, ‘हमारे साथ जातपात होता रहा है, हमारे बच्चों को इंसाफ नहीं मिलता है। हमें कोई बराबर नहीं मानता। हमने अपनी मर्जी से धर्म बदला है। अब बदल लिया तो बदल लिया, पीछे नहीं हटेंगे। मौत भी आएगी तो उसका सामना करेंगे।’
सुनीता कहती हैं, ‘हमारे धर्म बदलने से लोगों का नजरिया बदलेगा। आगे और भी लोग धर्म बदलेंगे। हमारी बहन-बेटी को आज समाज में सम्मान नहीं है। आज हमारा सम्मान नहीं है तो आगे भी नहीं होगा। बौद्ध धर्म में हमें बराबरी मिलेगी। हमारे बच्चे के नाम के आगे बौद्ध लगा होगा तो कोई उनसे उनकी जात नहीं पूछेगा।’
वो कहती हैं, ‘कभी सरकार ने आकर ये देखा कि बड़ी जाति के लोग हमारे साथ कैसा व्यवहार करते हैं। हमारी जात देखकर हमें काम पर नहीं रखा जाता है। हम नाली के कीड़े थे, लैटरीन उठाने वाले थे, हमें वही समझा जाता है। उससे ज्यादा कुछ नहीं। मंदिर में पंडित को पता चल जाए कि हम वाल्मीकि हैं तो हमारा प्रसाद तक नहीं चढ़ाया जाता है।’
सुनीता कहती हैं, ‘हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी जब देश से बाहर जाते हैं तो अपने आप को बुद्ध के देश का बताते हैं। आज जब हमने उसी बौद्ध का धर्म अपना लिया तो ये परेशान क्यों हो रहे हैं। हम पर दुनियाभर के इल्जाम क्यों लगाए जा रहे हैं। चीन-पाकिस्तान से हमारे संबंध क्यों बताए जा रहे हैं। सिर्फ धर्म अपनाने पर हम पर इतने बड़े-बड़े आरोप लगाए जा रहे हैं।’
शाम होते-होते गाजियाबाद के SDM सदर देवेंद्र कुमार प्रशासनिक अमले के साथ वाल्मीकि मोहल्ले में पहुंचे। उनके साथ अलग-अलग विभाग के कर्मचारियों की फौज थी। वो पवन से कहते हैं, प्रशासन उनकी सभी मांगें मान रहा है। बच्चों के खेलने के लिए मैदान दिया जाएगा।
भीमराव अंबेडकर पार्क बनवाया जाएगा। जिनके राशन कार्ड नहीं हैं, राशन कार्ड बनेंगे। जो लोग बेरोजगार हैं और कर्ज चाहते हैं, उन्हें तुरंत दो लाख रुपए तक का कर्ज मिलेगा। एसडीएम जब अपने प्रस्तावों की फेहरिस्त खत्म करते हैं तो पवन कहते हैं, इस सबसे पहले उन्हें ‘अपनी बहन’ के लिए इंसाफ चाहिए।
विभाग के कर्मचारी मोहल्ले के लोगों के दरवाजे पर जा-जाकर जायजा ले रहे हैं कि उन्हें सामाजिक कल्याण की किस योजना का फायदा दिया जा सकता है। कुछ महिलाओं की पेंशन के फार्म भरे जा रहे हैं, कुछ का राशन कार्ड का फार्म भरा जा रहा है।
SDM लोगों को वो जमीन दिखाना चाहते हैं, जो वाल्मीकि समुदाय को अलॉट की जा रही है। मैं पवन से सवाल करती हूं कि जब सरकार इतना कुछ दे रही है तो वो क्यों नहीं प्रशासन की बात मान लेते। वो कहते हैं, ‘हमारी एक ही मांग है, हम बराबरी चाहते हैं। ये सब मांगें तो प्रशासन ने खुद जोड़ी हैं।’
करहेड़ा गांव में वाल्मीकि मोहल्ले और ठाकुरों के मोहल्ले में फर्क करना आसान नहीं है। गांव के ठाकुर कहते हैं कि इस गांव में न किसी तरह का कोई भेदभाव है और न ही तनाव। मैं ठाकुरों से बात कर ही रही थी कि एक बाइक पर दो नई उम्र के लड़के आए। इनमें एक ठाकुर था और दूसरा वाल्मीकि। वो दोनों कहते हैं, हम मिलकर रहते हैं, साथ उठते-बैठते हैं, खाते-पीते हैं।
इसी बीच एक ठाकुर युवक कहता है, ‘वो चूड़ो-चमारों का मोहल्ला है, ये ठाकुरों का। हमारा उनसे कोई मतलब नहीं है। ना ही किसी तरह का अत्याचार या विवाद है, बल्कि हम तो उनकी बहन बेटियों की शादियों में भी हर संभव मदद करते हैं। ‘ठाकुर मोहल्ले को लोग कई बार जाने-अनजाने चमार-चूड़े शब्द का इस्तेमाल करते हैं। उन्हें ये अहसास भी नहीं था कि ऐसे जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करके वो दलितों के सम्मान को ठेस पहुंचा रहे हैं।’
मैं वापस वाल्मीकि मोहल्ले आती हूं तो पवन कहते हैं, ‘हम दो तारीख का इंतजार कर रहे हैं। अगर हमारी बहन को इंसाफ नहीं मिला और परिवार को परेशान किया जाता रहा तो हजारों और लोग बौद्ध धर्म की दीक्षा लेंगे। राजरतन आंबेडकर जी फिर यहां आ रहे हैं।’साभार-दैनिक भास्कर
हमारा न्यूज़ चैनल सबस्क्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
Follow us on Facebook http://facebook.com/HamaraGhaziabad
Follow us on Twitter http://twitter.com/HamaraGhaziabad
Discussion about this post