खरे सोने की पहचान के दौरान अब वातावरण में प्रदूषण का जहर नहीं घुलेगा। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सोने की परख (गोल्ड एसेइंग) और हॉल मार्क लगाने की प्रक्रिया के दौरान निकलने वाले हानिकारक तत्वों को वातावरण में फैलने से रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। पहली बार जारी किए जाने वाले इन दिशा-निर्देशों में सोने की परख और हॉलमार्किंग की सभी प्रक्रियाओं को शामिल किया गया है।
सोने जैसी मूल्यवान धातु को लेकर हमेशा ही हर कोई ज्यादा से ज्यादा सचेत रहना चाहता है। इसके चलते सोने की खरीद-फरोख्त के दौरान उसकी परख बेहद जरूरी हो जाती है। जबकि, सोने की गुणवत्ता लेकर उस पर हॉल मार्क लगाए जाते हैं। लेकिन, इस प्रक्रिया के दौरान बहुत सारे हानिकारक तत्व वातावरण में घुल-मिल जाते हैं जो इंसानी स्वास्थ्य के लिए बेहद घातक हैं। इसे देखते हुए सीपीसीबी ने पहली बार सोने की परख (गोल्ड एसेइंग) और हॉलमार्किंग को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए हैं। देश भर में इस समय 923 ऐसे केन्द्र हैं जहां पर सोने की परख और हॉल मार्किंग का काम किया जाता है। इन सभी को इन दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा।
कैसे होती है सोने की परख
सोने की खरीद के साथ ही उसकी शुद्धता जांचने के लिए सेंटर में भेज दिया जाता है। आमतौर पर ये सेंटर घने सर्राफा बाजारों के बीच होते हैं। इसलिए यहां पर होने वाले प्रदूषण काफी ज्यादा घातक हो सकते हैं। सोने को पहले एक्सरे फ्लोरोसेंट मशीनों से गुजारा जाता है। फिर सोने के नमूने को आग की लपटों के बीच पिघलाया जाता है। इसमें अपनाई जाने वाली प्रक्रिया में लेड ऑक्साइड और नाइट्रिक एसिड वाली लपटें निकलती हैं। इन लपटों को पानी की बूंद से ठंडा किया जाता है।
होता है घातक प्रदूषण
लेड ऑक्साइड और नाइट्रिक एसिड वाली इन लपटों के हवा में मिलने से घातक प्रदूषण होता है। जबकि, इसे ठंडा किए जाने वाले पानी में भी लेड और नाइट्रिक एसिड की मात्रा घुल जाती है। जबकि, यहां से निकलने वाले कचरे में अलग-अलग हैवी मैटल होते हैं।
इन दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा
– सोने की परख के उपकरण इस प्रकार से डिजाइन होने चाहिएं जिससे उसकी लपट हवा में घुले-मिले नहीं
– यहां से निकलने वाले पानी और कचरे को सीधे टीएसडीएफ केंद्र (ट्रीटमेंट, स्टोरेज और डिस्पोजल फैसिलिटी) भेजा जाना चाहिए
– सोने की परख और हॉल मार्किंग का काम करने वाले सभी कारीगरों को आवश्यक उपकरण पहनाने चाहिएं
– प्रदूषण रोकने के लिए लगाए जाने वाले उपकरण विशेषज्ञ या राज्य प्रदूषण नियंत्रण द्वारा अनुमोदित होने चाहिएं
– हॉलमार्किंग सेंटर पर लिटमस पेपर या पीएच मीटर होने चाहिए, जिससे कि प्रक्रिया में इस्तेमाल एसिड की जांच हो सके
– इस पूरी प्रक्रिया में कितना कचरा पैदा हुआ, कितना खराब पानी निकला आदि के बारे में पूरा रिकॉर्ड रखना जरूरी रहेगा साभार-लाइव हिन्दुस्तान
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