बिठूर एसओ समेत कई पुलिसकर्मी ऐसे हैं, जिनको गवाह के रूप में नहीं रखा गया है, जबकि ये सभी घायल भी हुए थे।
उत्तर प्रदेश के कानपुर के चौबेपुर थाना के बिक्ररू कांड में पुलिस ने अदालत में 2058 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की है। इस मामले में 102 गवाह बनाए गए हैं। गवाहों की संख्या 100 के पार है, लेकिन पुलिस को अपने विभाग को छोड़कर कोई भी प्रत्यक्षदर्शी नहीं मिला, जो यह कह सके कि उसने 2 जुलाई की रात विकास दुबे और उसके गुर्गों को पुलिस पर गोलियां बरसाते देखा था। चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिक्ररू में दबिश डालने गई पुलिस टीम पर 2 जुलाई को विकास दुबे और उसके गुर्गों ने हमला कर दिया था। इसमें सीओ देवेंद्र मिश्रा समेत 8 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे।
पुलिस ने 1 अक्टूबर को अदालत में चार्जशीट दाखिल की. इसमें 8 सेक्टर के 25 दरोगा और हेड कांस्टेबल सहित 29 सिपाहियों के नाम है। इसमें 7 पोस्टमार्टम व अन्य मेडिकल गतिविधियों में शामिल 8 डॉक्टरों का नाम गवाहों की सूची में है। शहीद पुलिसकर्मियों के शवों की जांच के समय बनाए गए 15 गवाह भी शामिल हैं, जिनमें से ज्यादातर पुलिसकर्मियों के परिवार से हैं। 102 में से सिर्फ सुल्तान अहमद का नाम बाहरी व्यक्ति का है, जिसकी जेसीबी लगाकर पुलिस टीम का का रास्ता रोका गया था।
घायल पुलिसकर्मी गवाह नैन
यही नहीं गवाहों की सूची में घायल पुलिसकर्मियों के नाम भी नहीं हैं। बिठूर एसओ समेत कई पुलिसकर्मी ऐसे हैं, जिनको गवाह के रूप में नहीं रखा गया है। जबकि ये सभी घायल भी हुए थे। चार्जशीट में 24 पुलिसकर्मी प्रत्यक्षदर्शी हैं। इसके साथ दूसरी गतिविधियों में शामिल पुलिसकर्मियों को गवाह बनाया गया है। फिलहाल विकास दुबे की दहशत मरने के बाद भी कायम है। यही वजह है कि पुलिस को ग्रामीण गवाह नहीं।
मिल पाए, जो यह बता सके कि आखिर घटना उनके सामने हुई थी या नहीं। विशेषज्ञों की मानें तो आने वाले समय कहीं यह घटना पुलिस के लिए कोर्ट में सर दर्द न बन जाए। फिलहाल इस मामले में पुलिस के आला अधिकारी कुछ भी बोलने से बचते नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि मामला कोर्ट में विचारधीन हैं।
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