गाजियाबाद विकास प्राधिकरण का ऑडिट करते हुए सीएजी ने हाईटेक टाउनशिप से जुड़ी अनियमितताएं पकड़ी हैं। सीएजी की रिपोर्ट ने हाईटेक टाउनशिप के डेवलपरों को लाभ पहुंचाने के लिए सारे नियमों को ही ताख पर रख कर 572.48 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाने के मामले का खुलासा किया है। गाजियाबाद में उनसे भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क ही नहीं लिया।
मई 2005 में प्रदेश सरकार ने गाजियाबाद में हाईटेक टाउनशिप के विकास के लिए दो विकासकर्ताओं का चयन किया। तब महायोजना-2001 प्रभावी थी, जिसके अनुसार हाईटेक टाउनशिप के लिए नामित क्षेत्र की भू-उपयोग कृषि था। जुलाई 2005 में सरकार ने महायोजना-2021 को मंजूरी दी। इसके तहत हाईटेक टाउनशिप के लिए चिह्नित भूमि का उपयोग सांकेतिक था, इसलिए विकासकर्ताओं को भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क देना था। वर्ष 2006 और 2007 में बनाई गई नीतियों में भी विकासकर्ताओं से भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क लिए जाने की बात शामिल थी।
इसके बाद महायोजना-2021 के संबंध में 23 अप्रैल 2010 को एक शासनादेश हुआ कि उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन एवं विकास अधिनियम 1973 के तहत हाईटेक टाउनशिप के लिए भू-उपयोग सांकेतिक दिखाने का कोई प्राविधान नहीं है। चूंकि गाजियाबाद महायोजना-2021 में जैसा भू-उपयोग दिखाया गया था, उस प्रकार की भूमि का उपयोग आवासीय माना जाएगा। अत: इस क्षेत्र पर भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क देय नहीं होगा। मई 2017 में ऑडिट के दौरान पाया गया कि आवास एवं शहरी नियोजन विभाग ने विकासकर्ताओं के अनुरोध पर महायोजना में सांकेतिक भू-उपयोग को आवासीय में परिवर्तित कर उन्हें शुल्क से राहत दे दी। इस तरह विकासकर्ताओं को अनुचित लाभ दिया गया और प्राधिकरण को 572.48 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ
23 अप्रैल 2010 का आदेश इस तथ्य की अनदेखी करते हुए जारी किया गया था कि महायोजना में प्रस्तावित हाईटेक सिटी का भू-उपयोग मात्र सांकेतिक था। प्राधिकरण का आशय विकासकर्ताओं से भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क वसूल करने के बाद ही भू-उपयोग को कृषि से आवासीय में बदलने का था।
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