मुरादनगर, गाज़ियाबाद। श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के अवसर पर नागपंचमी का पर्व परंपरागत श्रद्धा के साथ मनाया गया। इस अवसर पर सत्य सनातन धर्म के मानने वाले लोगों ने नागदेव को प्रसन्न करने के लिए पूजा अर्चना की। दिल्ली-मेरठ रोड स्थित असालतनगर स्थित श्रीसिद्ध हनुमान पीठ के प्रधान पुजारी आचार्य राजेश कुमार पाण्डेय के अनुसार त्यौहार को मनाने की लंबी परम्परा भारत वर्ष में प्राचीन काल से ही रही है। वैसे तो प्रत्येक मास एवं पक्ष में कोई न कोई पर्व मनाया जाता है।
भारत के लोक जीवन में पर्व श्रृंखला की शुरुआत नागपंचमी से ही मानी जाती है। रक्षांबधन, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्दशी, विश्वकर्मा पूजा, अनंत चतुर्दशी, पितृ विसर्जन, दशहरा, करवा चौथ, दीपावली, मकर संक्राति से होते हुए होली के उल्लास के साथ इस पर विराम लगता है। नागंपचमी के दिन महिलाएँ घर के मुख्य दरवाजे के बगल में दीवार पर गोबर से नाग-नागिन की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा करती हैं।
इस दिन कुंवारी कन्याएं श्रृंगार कर मंगल गीत गाती हैं तथा झूले झूलती हैं। सभी कष्टों से छुटकारा पाने के लिए लोग नागदेव के के लिए दूध-लावा भी रखते हैं। इस दिन सर्प देखना शुभ माना जाता है। सपेरे सुबह से ही गली-मोहल्लों में घूम-घूमकर नागदेव का दर्शन कराते रहे हैं। इस दिन शिवालयों में काल सर्प-योग के दोष को दूर करने के लिए विशेष अनुष्ठान किया जाता है।
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