मध्यप्रदेश के नीमच में चाय की गुमटी लगाने वाले सुरेश गंगवाल की 23 साल की बेटी आंचल जब हैदराबाद में एयरफोर्स ट्रेनिंग एकेडमी में एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया के सामने मार्च पास्ट कर रही थीं तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। इसकी वजह है उनके पिता व उनका संघर्ष, जिन्होंने तमाम मुश्किलों के बीच बेटी का साथ दिया। शनिवार को 123 कैडेट्स के साथ आंचल गंगवाल की भारतीय वायुसेना में कमिश्निंग हो गई।
आंचल के पिता सुरेश गर्व से भरी मुस्कुराहट के साथ कहते हैं, ‘फादर्स डे पर एक पिता के लिए इससे अच्छा तोहफा क्या हो सकता है। मेरी जिंदगी में खुशी के अवसर कम आए हैं। लेकिन कभी हार न मानने वाली बेटी ने यह साबित कर दिया कि मेरे हर संघर्ष के पसीने की बूंदें किसी मोती से कम नहीं हैं।’
वहीं आंचल ने कहा, ‘मुसीबतों से न घबराने का सबक उन्होंने अपने पिता से सीखा है। जीवन में आर्थिक परेशानियां आती हैं लेकिन मुश्किलों का मुकाबला करने का हौसला होना जरूरी है।’ आंचल को वायुसेना में लड़ाकू पायलट के तौर पर चुना गया है। इसपर उन्होंने कहा कि वायुसेना में फ्लाइंग ऑफिसर बनने के लिए मैंने पुलिस सब इंस्पेक्टर और लेबर इंस्पेक्टर की नौकरी छोड़ दी थी।
उन्होंने कहा, ‘मेरा केवल एक लक्ष्य था। हर हाल में वायुसेना में जाना है। आखिरकार छठवीं कोशिश में मुझे सफलता मिली।’ आंचल के पिता ने बताया कि मेरे तीनों बच्चे शुरू से ही अनुशासन में रहे। मैं पत्नी के साथ बस स्टैंड पर चाय-नाश्ते का ठेला लगाता हूं। जब मैं काम करता तो तीनों बच्चे हमें देखते रहते थे। कभी कोई फरमाइश नहीं की। जो मिल जाता उसमें खुश रहते। कभी भी दूसरों की देखा-देखी नहीं की।’
उन्होंने कहा कि रविवार को बेटी आंचल ने हैदराबाद में वायुसेना के सेंटर पर फ्लाइंग ऑफिसर के पद पर ज्वाइनिंग की है। यही अब तक की मेरी पूंजी और बचत है। बेटी शुरू से ही पढ़ाई में टॉपर रही है। बोर्ड की परीक्षा में उसने 92 प्रतिशत से ज्यादा अंक हासिल किए थे। 2013 में उत्तराखंड में आई त्रासदी और वायुसेना ने जिस तरह वहां काम किया। उसे देखकर बेटी ने अपना मन बदला और वायुसेना में जाने की तैयारी की। आज बेटी इस मुकाम पर पहुंच गई है तो यह मेरे लिए गर्व की बात है।
देश की सेवा के लिए हमेशा हूं तैयार
आंचल ने अपनी कामयाबी का श्रेय मां बबीता और पिता सुरेश गंगवाल को दिया। उन्होंने कहा, ‘जब मैंने माता-पिता से कहा कि मैं रक्षा क्षेत्र में जाना चाहती हूं तो वे थोड़े परेशान थे। हालांकि उन्होंने मुझे कभी रोकने की कोशिश नहीं की। असल में, वे मेरे जीवन के आधार स्तंभ हैं। मैं अपनी देशसेवा के लिए हमेशा तैयार हूं।’
साभार: नई दुनिया।
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