जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला के खिलाफ जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत लगाये गये आरोप शुक्रवार को हटा दिए गए। राज्य के गृह सचिव शालीन काबरा ने एक आदेश में कहा कि 17 सितम्बर को अब्दुल्ला पर लगाया गया पीएसए को हटा दिया गया है। अब्दुल्ला पर लगाये गये पीएसए की अवधि 13 दिसम्बर को बढ़ा दी गई थी। यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है।
आपको बता दें कि 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से घाटी में किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए वहां के स्थानीय नेताओं को नजरबंद कर लिया गया था। पिछले साल 4 अगस्त से अब्दुल्ला नजरबंद थे और प्रशासन के पीएसए हटाने के करीब सात महीने बाद वह रिहा होंगे। फारुक अब्दुल्ला समेत उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और सज्जाद लोन को नजरबंद किया गया था। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले महीने कहा था कि वह जम्मू-कश्मीर के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों के नजरबंदी से जल्द रिहा होने की प्रार्थना कर रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि वे कश्मीर में हालात को सामान्य बनाने में योगदान देंगे।
मोदी सरकार ने हटाया था अनुच्छेद 370
मोदी सरकार द्वारा पिछले वर्ष पांच अगस्त को जम्मू एवं कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 को हटा दिया गया था, जिसके बाद राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया गया। इसी समय से एहतियात के तौर पर जम्मू-कश्मीर के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों नेशनल कॉन्फ्रेंस से फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) से महबूबा मुफ्ती सहित दर्जनों राजनेताओं को नजरबंद कर दिया गया था।
तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को छोड़कर सभी नेताओं को कर दिया था रिहा
हालांकि इसके बाद से अधिकांश राजनेताओं को रिहा कर दिया गया है, मगर तीनों पूर्व मुख्यमंत्री और एक दर्जन राजनेताओं को अभी भी नजरबंद रखा गया है। फारूक अब्दुल्ला को सितंबर में कड़े सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत नजरबंद किया गया और इसके कुछ समय बाद उमर और महबूबा को भी इसी के तहत हिरासत में लिया गया था। सरकार ने सुरक्षा की दृष्टि से इन नेताओं के भड़काऊ बयानों का हवाला देते हुए इन्हें नजरबंद रखा है।
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