नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में उत्तर प्रदेश में हिंसक प्रदर्शन हुए थे। इस दौरान व्यापक पैमाने पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया था। इसके बाद प्रदेश सरकार ने हिंसा में शामिल सभी आरोपियों का पोस्टर सार्वजनिक तौर पर लखनऊ के चौक-चौराहे पर लगा दिए थे। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को तत्काल ये पोस्टर-बैनर हटाने को कहा था। इस पर उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की थी। इस पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत की बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि उन्हें आरोपियों का पोस्टर लगाने का अधिकार किस कानून के तहत मिला है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभी तक शायद ऐसा कोई कानून नहीं है, जिसके तहत उपद्रव के कथित आरोपियों की तस्वीरें होर्डिंग में लगाई जाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद इस मामले को बड़ी बेंच के हवाले कर दिया। अब इस मामले की सुनवाई अगले हफ्ते 3 जजों की पीठ करेगी। इसके साथ ही इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को हुई सुनवाई में अंतरिम आदेश भी नहीं दिया।
कोर्ट ने पूछा- सरकार ने इतना सख्त कदम कैसे उठाया
मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की पीठ ने CAA हिंसा के कथित आरोपियों के पोस्टर लगाने के यूपी सरकार के फैसले पर हैरानी व्यक्त की। कोर्ट ने कहा कि यह सवाल उठता है कि कथित आरोपियों के पोस्टर लगाने का फैसला आखिर यूपी सरकार ने कैसे ले लिया। कोर्ट ने कहा, ‘हम राज्य सरकार की चिंताओं को समझते हैं, लेकिन इस तरह का कोई कानून नहीं है जिससे कि आपके इस कदम को जायज ठहराया जा सके।’
बचाव पक्ष की तरफ से दी गई दलील
सुप्रीम कोर्ट में लखनऊ पोस्टर मामले में बचाव पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीलें दी। सिंघवी ने कोर्ट में यूपी सरकार के इस कदम पर कहा कि इस तरह की कोई नीति या कानून हमारे देश में नहीं है। अगर ऐसा होता तो रेप और हत्या के मामलों में आरोपियों की तस्वीरें इसी तरह सार्वजनिक रूप से लगा दी जाएं, तो आरोपी की लिंचिंग हो जाएगी।
दो जजों की पीठ ने की सुनवाई
लखनऊ में CAA के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा के बाद कथित आरोपियों के पोस्टर लगाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को झटका दिया था। अदालत ने यूपी पुलिस को सभी बैनर व पोस्टर हटाने का आदेश दिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इसी फैसले को यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसकी सुनवाई जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने की। कोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस आयुक्त को 16 मार्च तक हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को इस बारे में अनुपालन रिपोर्ट पेश करने को भी कहा था। उच्च न्यायालय ने पोस्टर-बैनर लगाने के लिए राज्य सरकार के अधिकारियों की खिंचाई भी की थी।
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