पहली बार देश का संविधान छापने वाली दो लिथोग्राफ मशीनें कबाड़ के भाव में बिकीं। सर्वे ऑफ इंडिया के अधिकारियों ने बताया कि दोनों मशीनों को खोलकर पिछले साल स्क्रैप डीलर को करीब डेढ़ लाख रुपए में बेच दिया था। लेकिन जानकारी अब सामने आई। दोनों मशीनें 100 साल तक सर्वे ऑफ इंडिया के प्रेस में रहीं। सॉव्रिन और मोनार्क नाम की इन दोनों प्रिंटिंग मशीन के मॉडल का निर्माण क्रैबट्री कंपनी ने किया था।
भारतीय संविधान की शुरुआती एक हजार प्रतियों का प्रकाशन 1955 में देहरादून के सर्वे ऑफ इंडिया ने कराया था। इसकी एक प्रति अभी भी उसके पास सुरक्षित है। बाकी सभी प्रतियां छपने के बाद दिल्ली भेज दी गई थीं। कैलीग्राफी आर्टिस्ट प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने अंग्रेजी में और वसंत कृष्ण वैद्य ने हिंदी में संविधान की कॉपी पर काम किया था, जबकि इसके पन्नों का डिजाइन नंदलाल बोस, बेहोर राममनोहर सिन्हा और शांति निकेतन के अन्य कलाकारों ने किया था।
इसलिए बेच दी मशीनें
सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल गिरीश कुमार के मुताबिक, ‘‘लिथोग्रैफिक मशीनें बीते जमाने की थीं। इनका रखरखाव काफी महंगा हो गया था। अब इन मशीनों का इस्तेमाल प्रिंटिंग के लिए नहीं होता है, लिहाजा बेचना ही सही था। सर्वे ऑफ इंडिया को 252 साल हो गए हैं। इतने लंबे समय में हमारे पास कई ऐतिहासिक विरासतें हैं। हमें इनसे जुड़ाव भी है, लेकिन वक्त के साथ चलना और आगे बढ़ना ही समझदारी है। मशीनों का प्रतिरूप किसी म्यूजियम में रखने पर विचार हो सकता है।’’
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