टेलिकॉम कंपनियों को नहीं मिली सुप्रीम कोर्ट से राहत, जमा कराने होंगे ₹ 72 हज़ार करोड़

टेलीकॉम कंपनियों को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली. सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी. अदालत ने कहा कि हमें नहीं लगता कि फैसले में पुनर्विचार की जरूरत है. इस तरह टेलीकॉम कंपनियों को सरकार को लगभग 92 हज़ार करोड़ रुपये चुकाने होंगे. इस प्रकार शीर्ष अदालत ने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) पर पुनर्विचार याचिका ठुकराई. एयरटेल को 23, वोडाफोन-आइडिया को 27 और आरकॉम को साढ़े 16 हज़ार करोड़ रुपये चुकाने होंगे. इससे पहले पिछले साल 24 अक्‍टूबर को दिए गए फैसले के खिलाफ भारती एयरटेल, वोडाफोन-आइडिया और टाटा टेलिसर्विस ने पुनर्विचार याचिका दायर की थी.

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने 24 अक्‍टूबर को फैसला दिया था कि लाइसेंस और स्पेक्ट्रम फीस के भुगतान की गणना के लिए एजीआर में नॉन-टेलीकॉम रेवेन्यू भी शामिल किया जाए. इस फैसले से टेलीकॉम कंपनियों की सरकार को देनदारी बढ़ गई थी. यही वजह है कि भारती एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया ने पिछले साल दिसंबर से टैरिफ बढ़ा दिया था. इन दोनों के बाद रिलायंस जियो ने भी मोबाइल टैरिफ बढ़ा दिया था. कैबिनेट ने वित्तीय संकट से जूझ रही दूरसंचार कंपनियों को राहत देते हुए उनके लिए स्पेक्ट्रम किस्त का भुगतान दो साल के लिए टालने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी थी. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने फैसले की जानकारी देते हुए कहा था कि दूरसंचार कंपनियों को 2020-21 और 2021-22 दो साल के लिए स्पेक्ट्रम किश्त भुगतान से छूट दी गई है.

इस एजीआर संबंधित देनदारी में बढ़ोतरी हो सकती थी. ब्रोकरेज फर्म ने कहा था कि कंपनी ने टेलीकॉम डिपार्टमेंट से मिले नोटिस के आधार पर एजीआर की मूल रकम के 11,100 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया है. वहीं, पिछले 2-3 साल का अनुमान कंपनी ने खुद लगाया है. ब्रोकरेज फर्म क्रेडिट सुइस के अनुसार, वोडाफोन आइडिया की एजीआर संबंधित देनदारी 54,200 करोड़ रुपये रह सकती है.ऐसे में टेलीकॉम कंपनी को 10,100 करोड़ रुपये की अतिरिक्त प्रोविजनिंग एजीआर के लिए करनी पड़ेगी. सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी को तीन महीने के अंदर इस रकम का भुगतान करने का आदेश दिया था.

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