उत्तर प्रदेश के कई जिलों में संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शनों से संबंध में खुफिया विभाग की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि जन आक्रोश स्वस्फूर्त था, लेकिन हिंसा ज्यादातर संगठित थी। रिपोर्ट में प्रदेश के संवदेनशील इलाकों में भीड़ भड़काने, आगजनी, गोलीबारी और बमबारी करने में सिमी के कथित नए रूप पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की भूमिका का भी खुलासा हुआ है। यूपी हिंसा में पीएफआई की भूमिका का पता लगाने के लिए एक विस्तृत जांच चल रही है। राज्य केंद्रीय गृह मंत्रालय से संगठन के खिलाफ उचित कार्रवाई शुरू करने का आग्रह करेगा।
आपको बता दें कि इस हिंसा के दौरान प्रदेश में 21 लोगों की मौत हो गई और लगभग 400 लोग घायल हुए। विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित पश्चिमी उत्तर प्रदेश रहा, जहां आगजनी, गोलीबारी और सरकारी संपत्ति नष्ट करने के मामले में 318 लोगों को गिरफ्तार किया गया।
मेरठ जोन के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी) प्रशांत कुमार ने कहा, ‘कई मामलों में पीएफआई नेताओं के खिलाफ सबूत पाए गए हैं। अब तक पीएफआई के लगभग 20 सदस्यों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इनमें पीएफआई की राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया का प्रदेश अध्यक्ष नूर हसन भी शामिल है। हिंसा का मुख्य केंद्र मेरठ, मुजफ्फरनगर और बुलंदशहर रहे।’
एडीजी के अनुसार, ‘पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दंगों जैसे हालात बनाने में पीएफआई की भूमिका की जांच हो रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर हिंसा भड़काने वाले दंगाइयों की मौजूदगी के सबूत मिले हैं। यहां बिजनौर, संभल और रामपुर बुरी तरह प्रभावित हुए।’
वहीं रामपुर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) अजय पाल शर्मा ने कहा, ‘हमें शक है कि हिंसा, खासतौर से सरकारी संपत्ति को आग लगाने की घटनाएं संगठित थीं।’ यह पूछने पर कि उन्हें ऐसा शक क्यों है? आईपीएस अधिकारी ने कहा, यह तथ्य बहुत चौंकाने वाला है कि जहां प्रदर्शनकारी बड़ी संख्या में मौजूद थे, वे स्थान अपेक्षाकृत शांत थे। जबकि जिन स्थानों पर प्रदर्शनकारी बहुत कम संख्या में थे, वहां हिंसा बड़े पैमाने पर हुई। उदाहरण के तौर पर, ईदगाह पर मैं खुद और डीएम लगभग 15,000 प्रदर्शनकारियों (जो शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे) पर नजर बनाए हुए थे। वहीं, कुछ दूर स्थित हाथीखाना में सिर्फ कुछ प्रदर्शनकारियों ने आगजनी, पुलिस पर गोलीबारी की और देशी बम फेंके। यह स्पष्ट हो गया कि किसी अन्य स्थान से संचालित दंगाइयों के एक छोटे समूह का एजेंडा पूरी तरह अलग था।’
रामपुर संभल से लगा हुआ है, जिसकी सीमा सीएए विरोधी रैली के दौरान भड़की हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में से एक अलीगढ़ से लगती है। खुफिया रिपोर्ट्स का कहना है कि पीएफआई की गतिविधियों का नया गढ़ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) बन गया है। पीएफआई ने 15 दिसंबर को एएमयू परिसर को रणक्षेत्र बना दिया और यहां दिनभर छात्रों और पुलिस के बीच हिंसा होती रही।
पुलिस ने आरोप लगाया कि हिंसा भड़काने में पीएफआई और अन्य स्थानीय मुस्लिम संगठनों ने मुख्य भूमिका निभाई। सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील शहर अलीगढ़ में हिंसा को और ज्यादा भड़कने से रोकने के लिए एएमयू को पांच जनवरी तक के लिए बंद कर दिया गया है और सभी छात्रावास खाली करने के आदेश दे दिए गए हैं। छात्रों का बचाव करते हुए एएमयू शिक्षक संघ ने अब 15 दिसंबर की हिंसा की न्यायिक जांच की मांग की है। हालांकि एएमयू प्रशासन पुलिस-छात्र संघर्ष में पीएफआई की छात्र इकाई और यूनिवर्सिटी में खासा आधार वाले संगठन कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया की भूमिका पर चुप है।
देश में सर्वाधिक हिंसा प्रभावित शहरों में कानपुर भी शामिल था, जहां 20 नवंबर को जुमे की नमाज के बाद सड़क पर लगभग 2.5 लाख लोग उतर आए थे। कानपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अनंत देव ने बताया, ‘हिंसा बाहरी लोगों द्वारा आयोजित लगती है। इस मामले में हमें और सबूतों की जरूरत है। फिलहाल हमने 17 मामले दर्ज किए हैं और पुलिस विडियो फुटेज के माध्यम से और दोषियों की पहचान कर रही है।’
राज्य पुलिस की विशेष जांच टीम (एसआईटी) भी यह पता करने की कोशिश कर रही है कि क्या कानपुर के दंगाइयों का लखनऊ के दंगाइयों से संपर्क था। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पुलिस ने पीएफआई के प्रदेश संयोजक वसीम अहमद समेत अन्य पदाधिकारियों को शहर में बड़े पैमाने पर हिंसा और आगजनी करने के मामले में गिरफ्तार किया।
पुलिस और खुफिया एजेंसियां प्रदेशभर में हिंसा में पीएफआई को की संलिप्तता क्यों मानती हैं? इस पर संगठन के केंद्रीय नेतृत्व ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने संगठन को झूठे आरोप में फंसाया है। पीएफआई ने कहा कि लखनऊ पुलिस द्वारा गिरफ्तार अहमद की आगजनी या सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने में कोई भूमिका नहीं थी। पीएफआई के एक पदाधिकारी ने कहा,’ ये गिरफ्तारियां इन जन-आंदोलनों को दबाने और उन्हें आतंकवादी घटना के तौर पर पेश करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा हैं।’
इस बीच, उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव स्तर के एक अधिकारी ने कहा कि सीएए विरोधी प्रदर्शनों में पीएफआई की भूमिका का पता लगाने के लिए एक विस्तृत जांच चल रही है। उन्होंने कहा कि राज्य केंद्रीय गृह मंत्रालय से संगठन के खिलाफ उचित कार्रवाई शुरू करने का आग्रह करेगा।
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