गाज़ियाबाद जिले में मोदीनगर तहसील के गांव गदाना निवासी किसान मनोज नेहरा परंपरागत खेती को अलग तरीके से कर करीब शून्य लागत में लाखों का मुनाफा कमाते हैं। उनके यहां के जैविक गन्ने से बने गुड़ शक्कर की मांग विदेशों तक है। जैविक गन्ने से बना गुड़ स्वादिष्ट होने के साथ गुणवत्ता में भी बेजोड़ है। दूरदराज के किसान जैविक खेती करने का तरीका देखने और सीखने गदाना पहुंच रहे हैं। रासायनिक खादों से खेती करने के तमाम दुष्परिणाम सामने आए हैं। रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी में अति सूक्ष्म आवश्यक तत्वों की कमी हो जाती है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, पिछले 50-60 सालों में जिंक, लौह, तांबा एवं मैग्नीशियम हमारी मिट्टी से धीरे-धीरे खत्म हो गए हैं। घातक दुष्परिणामों से चिंतित वैज्ञानिक किसानों को जैविक खेती करने के लिए प्रेरित कर रहें है।
मोदीनगर-हापुड़ मार्ग स्थित गांव गदाना निवासी किसान मनोज नेहरा पिछले 20 साल से लगातार जैविक खेती कर रहें हैं। 50 वर्षीय मनोज नेहरा ने बताया कि उन्हें रासायनिक खाद का प्रयोग करने में डर लगता था। इसलिए उन्होंने खेती की शुरूआत से ही फसलों में जैविक खाद का प्रयोग किया।
समय गुजरा तो रासायनिक और जैविक खाद के लाभ और दुष्परिणाम सामने आए। मनोज में जैविक खेती के प्रति जुनून पैदा हो गया और उन्होंने जैविक फसलें उगाने के साथ ही अन्य किसानों को भी खेती करने के लिए प्रेरित किया। वह जैविक गेहूं और सरसों के बाद अब जैविक गन्ने की खेती कर रहें है और लगभग शून्य लागत पर प्रति एकड़ दो लाख रुपये से अधिक का मुनाफा कमाते हैं।
कम लागत अधिक मुनाफा
रासायनिक खादों से खेती करने पर करीब 35 से 40 हजार रुपये प्रति एकड़ का खर्चा आता है। जैविक खाद से मात्र दो से तीन हजार प्रति एकड़ खर्च होते है। जैविक फसलों से बने गुड़ और शक्कर व अन्य उत्पाद सामान्य के मुकाबले दोगुने दामों पर बाजार मे बिकते हैं। मनोज नेहरा बताते हैं कि उन्होंने जैविक गन्ने की फसल से गुड़ व शक्कर बनाना शुरू किया।
स्वादिष्ट व गुणवत्तापरक गुड़ के शौकीन लोगों को जानकारी लगी तो दूरदराज से खरीदने गांव पहुंचने लगे। बताया कि जैविक गुड़ की डिमांड पूरी न होने के कारण सीजनभर उनके पास एडवांस बुकिंग रहती है। दिल्ली के कुछ व्यापारी उनका गुड़ व शक्कर खरीदकर विदेशों में एक्सपोर्ट करते हैं, जिसकी हमेशा एडवांस बुकिंग रहती है।
गोमूत्र से घर पर ही तैयार करते है जैविक खाद और पेस्टीसाइड
मनोज खेती में बाजार का कोई पेस्टीसाइड या खाद इस्तेमाल नहीं करते। वह गोमूत्र से खाद तथा पेस्टीसाइड तैयार करते है। खाद बनाने में वह गाय का गोबर, मूत्र, गुड़ व चोकर का इस्तेमाल करते हैद्घ पेस्टीसाइड बनाने में गोमूत्र, नीम के पत्ते, आंख के पत्ते, लहसुन, प्याज, तंबाकू तथा लाल मिर्च का इस्तेमाल करते हैं। पूरी प्रक्रिया के बाद खाद व पेस्टीसाइड तैयार कर वह उसका प्रयोग करते हैं।
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