एटा के प्रगतिशील किसान ने मुफ्त की पराली से 100 दिन में तीन लाख रुपया कमा लिए। दिल्ली, गाज़ियाबाद और एनसीआर में प्रदूषण का मुख्य कारण बनी पराली का सदुपयोग कर इस किसान ने उसे अपने रोजगार का साधन बना लिया। इस काम में परिवार के अन्य लोग भी साथ दे रहे हैं।
जैथरा के गांव मानपुरा निवासी प्रगतिशील किसान विनोद चौहान ने जिले के किसानों के सामने नई ऊर्जा जाग्रत की है। गांव में पड़ी पराली को चारा की मशीन से कुटवाकर तैयार किया। इससे बने भूसा से मशरूम की खेती के लिए तैयार किया। मशूरूम की पैदावार के लिए बिछा दिया। प्रयोग में लाने से पहले विनोद के मन में आशंका थी पता नहीं यह प्रयोग सफल होगा या नहीं। जैसे ही फसल का समय हुआ तो पिछले अन्य वर्षों की अपेक्षा इस वर्ष अच्छी मशरूम की फसल आई। 15 नवंबर से उन्होंने इसकी बिक्री शुरू कर दी है।
विनोद का दावा है कि एक बीघा पराली से मशरूम की खेती लगाई। इस खेती से 100 दिन में करीब तीन लाख रुपये की बिक्री हो जाएगी। अगर गेहूं के भूसा से इस खेती को करते थे तो भूसा करीब 25 हजार रुपये का खरीदना पड़ता था। इस बार पराली भी फ्री में मिल गई। हर वर्ष किसान धान की खेती करने के बाद पराली को जला देता है। इससे प्रदूषण की स्थिति बन जाती है। पराली को जलने से रोकने के लिए जिला प्रशासन भी पूरी पहल करता है। विनोद की तरह अगर अन्य किसान इस पराली का प्रयोग खेती में करे तो यह रोजगार का साधन बन जाए।
विनोद चौहान ने बताया कि जब मशरूम की खेती बंद हो जाएगी। उसके बाद भी इस पराली का बड़ा प्रयोग होगा। यह पराली देशी खाद के रुप में प्रयोग होगी। किसान इस खाद को डीएपी की जगह प्रयोग कर सकते है। इससे होने वाली फसल बिना रासायनिक खादों के तैयार हो जाएगी।
विनोद का कहना है कि कम से कम लागत में खेती करना ही किसान के लिए फायदेमंद है। मशरूम की खेती करना अब और भी अधिक सस्ता हो गया। अब तक भूसा का खर्चा होता था, वह खर्चा भी अब गया। किसान पराली का प्रयोग खाद के रुप में भी कर सकते है।
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