गाज़ियाबाद नगर निगम की कार्यप्रणाली को देखकर नहीं लगता है कि उसे नियमों या कायदे-कानून की परवाह है। निगम में बैठे अधिकारी खुलेआम जनसुनवाई और सूचना के अधिकार की धज्जियां उड़ा रहे हैं और लखनऊ में बैठे बड़े अधिकारी मूक दर्शक बने बैठे हैं। महापौर आशा शर्मा भी सिर्फ उन्हीं मामलों में रुचि दिखा रही हैं जिनसे उन्हें व्यक्तिगत लाभ-हानि हो रही है।
समय पर सूचना न मिलने से परेशान फ़ैडरेशन ऑफ एओए के संरक्षक ने प्रदेश सूचना आयोग से गाज़ियाबाद नगर निगम की शिकायत की ही। दरअसल आलोक कुमार ने सूचना के अधिकार के तहत गाज़ियाबाद निगम द्वारा बनाई गई एनिमल वेलफेयर कमेटी से कुछ जुड़े सवालों का जवाब मांगा था। समय पर सूचना नहीं मिली तो वे राज्य सूचना आयोग की शरण में गए हैं। उन्होंने बताया कि सूचना आयोग के आदेश के बाद भी नगर निगम ने एक साल बाद 5 में से महज 1 सवाल का जवाब दिया है।
आलोक कुमार के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में सभी नगर निगम को एनिमल वेलफेयर कमेटी बनाने का आदेश दिया था। इसके तहत उन्होंने दिसंबर 2018 में नगर निगम में आरटीआई डाली थी। इसमें उन्होंने पूछा कि जिले में एनिमल वेलफेयर कमेटी बनाई गई है तो उसमें कौन-कौन हैं। कमेटी को कुत्तों की समस्या पर क्या करना था? शहर में कितने कुत्तों की नसबंदी की गई? कितने लोगों को कुत्तों ने काटा और इन कुत्तों को सोसायटी से हटाया गया कि नहीं? एनिमल वेलफेयर राइट के नाम पर कितना भुगतान किया गया।
कई महीने तक इन सवालों का जवाब नहीं दिया गया तो आलोक कुमार ने उत्तर प्रदेश सूचना आयोग में शिकायत की। आयोग ने एक माह में जवाब न देने पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाने की चेतावनी दी। आलोक कुमार का कहना है कि आयोग के आदेश के बाद नगर निगम ने जवाब दिया कि एक अप्रैल 2017 से 31 मार्च 2019 तक 13,326 कुत्तों की नसबंदी की गई है। अन्य सवालों के जवाब में कहा कि उनके पास जानकारी नहीं है। इसके लिए उन्होंने दोबारा नगर निगम की उत्तर प्रदेश सूचना आयोग में शिकायत की है।
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