सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या के रामजन्मभूमि केस में मुस्लिम पक्ष के बाद अब निर्मोही अखाड़े ने भी याचिका दाखिल की है। हालांकि निर्मोही अखाड़े ने रिव्यू पिटिशन जमीन के फैसले को लेकर नहीं डाली है बल्कि शैबियत राइट्स, कब्जे और लिमिटेशन के बारे में फैसले पर सवाल उठाए हैं। निर्मोही अखाड़े के प्रवक्ता कार्तिक चोपड़ा ने यह जानकारी दी है।
सूत्रों के मुताबिक निर्मोही अखाड़े ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से राम मंदिर के ट्रस्ट में भूमिका तय करने की मांग की है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर को दिए अपने ऐतिहासिक फैसले में निर्मोही अखाड़े को शैबियत मानने से इनकार कर दिया था। हालांकि कोर्ट ने कहा था कि निर्मोही अखाड़े को राम मंदिर के ट्रस्ट में जगह दी जाएगी। निर्मोही अखाड़े के अलावा मुस्लिम पक्ष से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी रिव्यू पिटिशन डाली है।
आपको बता दें कि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने सर्वसम्मति के फैसले में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि की डिक्री ‘राम लला विराजमान’ के पक्ष में की थी और अयोध्या में ही एक प्रमुख स्थान पर मस्जिद निर्माण के लिये उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ भूमि आवंटित करने का निर्देश केन्द्र सरकार को दिया था।
शीर्ष अदालत के इस फैसले पर पुनर्विचार के लिए पहली याचिका दो दिसंबर को मूल वादकारियों में शामिल एम सिद्दीक के वारिस और यूपी जमीयत उलमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना सैयद अशहद रशीदी ने दायर की थी। इस याचिका में 14 बिन्दुओं पर पुनर्विचार का आग्रह करते हुए कहा गया है कि बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण का निर्देश देकर ही इस प्रकरण में ‘पूरा न्याय’ हो सकता है। इस फैसले पर पुनर्विचार के लिए अब मौलाना मुफ्ती हसबुल्ला, मोहम्मद उमर, मौलाना महफूजुर रहमान और मिसबाहुद्दीन ने दायर की हैं। ये सभी पहले मुकदमें में पक्षकार थे।
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