गाज़ियाबाद। दिवाली दीपों का त्योहार है, इसे दीपोत्सव की तरह ही मनाएं। पटाखे फोड़कर स्वास्थ्य का दिवाला न निकालें। जिला अस्पताल के फिजीशियन डॉ. आरपी सिंह के मुताबिक अस्थमा, बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए पटाखों का प्रदूषण घातक होता है। अस्थमा के मरीज आम दिनों के मुकाबले दिवाली के अगले सप्ताह 50 फीसद बढ़ जाते हैं। इतना ही नहीं मरीज को अस्थमा का अटैक पड़ने की आशंका भी 40 फीसद बढ़ जाती है। पटाखों का प्रदूषण न सिर्फ गर्भवती महिलाओं के लिए हानिकारक होता है, बल्कि गर्भ में पल रहे बच्चे की जान भी जा सकती है।
जिला अस्पताल के फिजीशियन डॉ. आरपी सिंह का कहना है कि पटाखे फोड़ने व जलाने पर निकलने वाले धुएं में सल्फर डाइआक्साइड, कार्बन डाइआक्साइड और कार्बन मोनोडाइआक्साइड जैसी विषैली गैसों का मिश्रण निकलता है। इसके अलावा कैडमियम, बेरियम, रूबीडियम, स्ट्रांसियम और डाइआक्साइन जैसे जहरीले तत्व शामिल होते हैं।
एक अन्य तत्व पोटेशियम परकोलेट, थायराइड ग्रंथि द्वारा आयोडीन ग्रहण करने की क्षमता में कमी लाता है। बाद में यह हाइपोथाइराडिज्म बीमारी का रूप धारण कर लेती है। स्ट्रांसियम जन्म-जात विकृति, रक्ताल्पता और अस्थिमज्जा को क्षति पहुंचाता है। डाइआक्सिन, जोकि एक जाना पहचाना कैंसर कारक पदार्थ है। यह हार्मोन असंतुलन पैदा कर ग्लूकोज की मेटाबोलिज्म में गड़बड़ी व त्वचा पर घाव जैसे दुष्प्रभाव भी डालता है।
दिवाली पर 140 से 150 डेसिबल तक के पटाखे खूब चलाए जाते हैं। इससे काफी नुकसान होने की आशंका रहती है। खासतौर पर बच्चों के दिलों की धड़कनें तेज पटाखों की आवाज से अधिक बढ़ जाती हैं। दिल के मरीजों के लिए तो यह काफी खतरनाक साबित हो सकते हैं। इतने ध्वनि प्रदूषण और तेज धमाकों से कानों में दर्द, बधिरता, सिर दर्द, नींद न आने जैसी बीमारियां हो सकती हैं।
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