गाजियाबाद। शहर के थाना कोतवाली में 1857 के दौरान अंग्रेजों द्वारा क्रांतिकारियों को फांसी देने वाले स्थान का पता चला है। प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य राज्यमंत्री अतुल गर्ग व सिटी मजिस्ट्रेट ने इसका मौके पर निरीक्षण किया। अब इसकी रिपोर्ट भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को भेजी जाएगी ताकि इसकी वास्तविकता का पता लगाकर इस स्थान को ऐतिहासिक इमरातों की लिस्ट में दर्ज कराया जा सके।
मौके का निरीक्षण करने के बाद अतुल गर्ग ने बताया कि बचपन में वह सुना करते थे कि 1857 के गदर में बाद अंग्रेज गाजियाबाद में क्रांतिकारियों को फांसी पर चढ़ा देते थे। फांसी देने की बात तो सब करते थे लेकिन यह फांसी कहां दी जाती थी इसका किसी को पता नहीं था। कुछ दिनों पहले उन्हें बताया गया कि थाना कोतवाली मेें एक गोल गुम्बद लंबे समय से बंद पड़ी थी।
इसमें फांसी देने के पूरे चिन्ह मिले है। यहां फांसी देने के लिए लोहे के गाटर पर कुंदा, नीचे फ्लेटफार्म, तख्ता, नीचे उतरने वाले लकड़ी के फट्टे की सीढी भी है। इसके साथ ही फांसी घर के ऊपर संतरी बैरक भी बनी है। गुरुवार को मंत्री अतुल गर्ग, सिटी मजिस्ट्रेट यशवर्धन श्रीवास्तव, लोनी विधायक नंदकिशोर गुर्जर व कोतवाली प्रभारी लक्षमण वर्मा ने इसका निरीक्षण किया।
निरीक्षण के दौरान देखने से साफ हुआ है कि वास्तव में यह फांसीघर है। किसी ने बताया यह कुआं लग रहा है लेकिन पूरी तहकीकात के बाद और इसकी बनावट से साफ लग रहा है कि यह वहीं स्थान है जिसकी बड़े बुजुर्ग चर्चा करते थे। संभावना है कि 1857 के गदर के बाद क्रांतिकारियों को अंग्रेज इसी स्थान पर फांसी देते थे।
इसकी स्थान की रिपोर्ट प्रशासन के माध्यम से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को भेजी जाएगी। उनके अधिकारियों से मांग की जाएगी कि इस स्थान जांच करेंगे। दीवारों की ईंट, सीमेंट व लोंहे व लकड़ी के सामान से पता चल सकेगा कि यह कितने समय पहले बनाया गया था।
कोतवाली प्रभारी लक्षमण वर्मा ने बताया कि इस गुम्बद में मालखाना बना हुआ था। मालाखाना प्रभारी हरिओम सिंह ने सफाई के दौरान में फांसीघर जैसे चिह्न पाए। इस पर उन्होंने इसकी पूरी सफाई कराने के आदेश दिए। गुम्बद पूरी तरह से जर्जर और कबाड़ से पटी पड़ी थी। थाने के गार्ड वीरपाल ने बताया कि पुराने लोग बताते थे कि यहां फांसी दी जाती थी। इसके बाद उत्सुकता और बढ़ गई। पूरी गुम्बद से मालखाना का सामान निकालकर निचले हिस्से से कूड़ा हटाया।
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