क्या आप जानते हैं कि कार्यस्थल पर महिलाओं के खिलाफ अत्याचार को लेकर एक कानून भी है, जिसे विशाखा गाइडलाइंस के नाम से जाना जाता है। आइसे सबसे पहले जानते हैं क्या है विशाखा गाइडलाइंस ?
वर्ष 1992 में राजस्थान की राजधानी जयपुर के निकट भटेरी गांव की एक महिला भंवरी देवी ने बाल विवाह विरोधी अभियान में हिस्सेदारी की बहुत बड़ी कीमत चुकाई थी। इस मामले में ‘विशाखा’ और अन्य महिला गुटों ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी और कामकाजी महिलाओं के हितों के लिए कानूनी प्रावधान बनाने की अपील की गई थी।इस याचिका के मद्देनजर साल 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा के लिए ये दिशा-निर्देश जारी किए थे और सरकार से आवश्यक कानून बनाने के लिए कहा था. उन दिशा-निर्देशों को विशाखा के नाम से जाना गया और उन्हें विशाखा गाइडलाइंस कहा जाता है.
‘विशाखा गाइडलाइन्स’ जारी होने के बाद वर्ष 2012 में भी एक अन्य याचिका पर सुनवाई के दौरान नियामक संस्थाओं से यौन हिंसा से निपटने के लिए समितियों का गठन करने को कहा था, और उसी के बाद केंद्र सरकार ने अप्रैल, 2013 में ‘सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ वीमन एट वर्कप्लेस एक्ट’ को मंज़ूरी दी थी।
‘विशाखा गाइडलाइन्स’ के तहत आपके काम की जगह पर किसी पुरुष द्वारा मांगा गया शारीरिक लाभ, आपके शरीर या रंग पर की गई कोई टिप्पणी, गंदे मजाक, छेड़खानी, जानबूझकर किसी तरीके से आपके शरीर को छूना,आप और आपसे जुड़े किसी कर्मचारी के बारे में फैलाई गई यौन संबंध की अफवाह, पॉर्न फिल्में या अपमानजनक तस्वीरें दिखाना या भेजना, शारीरिक लाभ के बदले आपको भविष्य में फायदे या नुकसान का वादा करना, आपकी तरफ किए गए गंदे इशारे या आपसे की गई कोई गंदी बात, सब शोषण का हिस्सा है।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी की गई विशाखा गाइडलाइंस के मुताबिक ऐसा जरूरी नहीं कि यौन शोषण का मतलब केवल शारीरिक शोषण ही हो। आपके काम की जगह पर किसी भी तरह का भेदभाव जो आपको एक पुरुष सहकर्मियों से अलग करे या आपको कोई नुकसान सिर्फ इसलिए पहुंचे क्योंकि आप एक महिला हैं, तो वो शोषण है।
क्या है गाइडलाइंस
– कानूनी तौर पर हर संस्थान जिसमें 10 से अधिक कर्मचारी हैं वहां, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत अंदरूनी शिकायत समिति (ICC) होना जरूरी है।
– इस कमेटी में 50 फीसदी से ज्यादा महिलाएं होना आवश्यक है और इसकी अध्यक्ष भी महिला ही होगी। इस कमेटी में यौन शोषण के मुद्दे पर ही काम कर रही किसी बाहरी गैर-सरकारी संस्था (NGO) की एक प्रतिनिधि को भी शामिल करना ज़रूरी होता है।
– अगर किसी महिला को लगता है कि उसका कार्यस्थल पर शारीरिक शोषण हो रहा है तो वह कमेटी में लिखित शिकायतकर सकती हैं। अपनी बात साबित करने के लिए महिला को उत्पीड़न से संबंधित सभी दस्तावेज भी देने होंगे, जैसे मैसेज, ईमेल आदि। यह शिकायत 3 महीने के अंदर देनी होती है। उसके बाद कमेटी 90 दिन के अंदर रिपोर्ट पेश करती है।
– इसकी जांच में दोनों पक्ष से पूछताछ की जा सकती है। महिला की पहचान को गोपनीय रखना समिति की जिम्मेदारी है। इस गाइडलाइंस के तहत कोई भी कर्मचारी चाहे वो इंटर्न भी हो, वो भी शिकायत कर सकता है। उसके बाद अनुशानात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
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