अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली पुलिस को कन्हैया और 9 लोगों के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं देगी। यह मामला फरवरी 2016 में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के कैंपस में एक कार्यक्रम का है जिसमें कथित रूप से देश विरोधी नारे लगाए गए थे। कन्हैया और अन्य 9 लोगों पर उस कार्यक्रम में शामिल होने और देश विरोधी नारा लगाने का आरोप है। जेनएयू में कथित देश विरोधी कार्यक्रम को लेकर देश भर में हंगामा हो गया था। उस घटना के बाद जेएनयू छात्र संघ के तत्कालीन अध्यक्ष कन्हैया कुमार को गिरफ्तार किया गया था।
सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली के गृह मंत्री सत्येंद्र जैन ने इस मामले में अपनी राय दी है। उन्होंने कहा है कि पुलिस ने जो साक्ष्य पेश किया है, उसके मुताबिक कन्हैया और अन्यों पर देशद्रोह का मामला नहीं बनता है। दिल्ली सरकार के विचार को उस कोर्ट के समक्ष पेश किया जाएगा, जहां मामले की सुनवाई हो रही है। दिल्ली के उपराज्यपाल और दिल्ली पुलिस को भी इस मामले पर दिल्ली सरकार के रुख से अवगत कराया जाएगा।
देशद्रोह और भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छोड़ने जैसे मामले में कोर्ट पुलिस की चार्जशीट पर संज्ञान नहीं ले सकता है। उसके लिए संबंधित राज्य के गृह मंत्रालय की मंजूरी जरूरी होती है। वैसे अंतिम फैसला कोर्ट पर निर्भर करता है।
आपको बता दें कि कन्हैया कुमार और जेएनयू के अन्य छात्रों के खिलाफ देशद्रोह के मामले में पुलिस ने आईपीसी की धारा 124 ए के तहत मामला दर्ज किया है। दिल्ली के गृह मंत्री ने कहा, ‘एफआईआर नं.110/2016 के संदर्भ में पेश किए गए साक्ष्य के मद्देनजर हिंसा भड़काकर राज्य के खिलाफ देशद्रोह और राष्ट्र की संप्रभुता पर हमले का मामला नहीं बनता है और इस मामले में जिन 10 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई है, उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 124 ए के तहत मुकदमे का कोई केस नहीं बनता है। इसलिए सीआरपीसी की धारा 196 के तहत और आईपीसी की धारा 124ए के तहत अपराध के लिए मंजूरी अवांछित है।’ उन्होंने यह भी कहा कि मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से उन लोगों की जिंदगी को खतरा पैदा हो सकता है, जिनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई है।
फरवरी 2016 में संसद पर हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरु की फांसी के खिलाफ एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। कन्हैया पर उस दौरान मार्च का नेतृत्व करने और भारत विरोधी नारे लगाने का आरोप था। दिल्ली पुलिस ने इस साल जनवरी में कन्हैया कुमार, उमर खालिद, अनिर्बान भट्टाचार्य और अन्यों के खिलाफ देशद्रोह एवं अन्य अपराधों के लिए चार्जशीट दाखिल की थी। चार्जशीट दाखिल करने से पहले दिल्ली सरकार की मंजूरी नहीं ली गई थी। इस साल 23 जुलाई को जब कोर्ट में यह मामला सुनवाई के लिए आया था तो कोर्ट ने पुलिस को दिल्ली सरकार से आवश्यक मंजूरी लेने के लिए दो महीने का समय दिया था। इस केस में 18 सितंबर को सुनवाई की संभावना है।
सूत्रों ने बताया, पेश किए गए साक्ष्यों के आधार पर दिल्ली के गृह मंत्री का विचार है कि आरोपियों का हिंसा भड़काने का कोई इरादा नहीं था और मार्च के दौरान लगाए गए नारे को आरोपियों से नहीं जोड़ा जा सकता है। मंत्री ने कहा है कि छात्रों के दो राजनीतिक गुटों ने एक-दूसरे को चिढ़ाने के इरादे से नारे लगाए थे। कथित देशविरोधी नारे अन्य गुट को चिढ़ाने के लिए थे न कि राज्य और उसकी संप्रभुता को चुनौती देने के लिए।
उन्होंने कहा है कि छात्रों के दो गुटों के बीच झगड़े के कारण कथित घटना हुई और कथित नारों को आरोपियों से नहीं जोड़ा जा सकता है। लेकिन उन्होंने कहा है कि पुलिस एफआईआर में उल्लेख की गई अन्य धाराओं के तहत आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर सकती है। गृह मंत्री ने सक्षम प्राधिकारी की पूर्व मंजूरी के बगैर अधूरी चार्जशीट दाखिल करने पर भी सवाल उठाया है। उन्होंने कहा है कि जांच एजेंसी (इस मामले में दिल्ली पुलिस) ने कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करने के बाद मंजूरी मांगी।
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