आज पूर्वोत्तर राज्य असम में नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) की अंतिम सूची जारी कर दी गई है। इस लिस्ट में 3.11 करोड़ लोगों को जगह दी गई है, जबकि असम में रहने वाले 19.06 लाख लोग इस लिस्ट में शामिल नहीं किए गए हैं। इनमें अधिकतर वे लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने अपना दावा नहीं किया था।
इन लोगों के लिए यह भले ही चिंता की बात हो, लेकिन यह आखिरी फैसला नहीं है। लिस्ट में जगह न पाने वाले लोगों के पास इसके खिलाफ अपील करने के विकल्प होंगे। फॉरेन ट्राइब्यूनल से हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक वे एनआरसी में जगह न मिलने पर अपील कर सकेंगे। यही नहीं सभी कानूनी विकल्पों को आजमाने तक उनके खिलाफ सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर सकेगी।
लिस्ट जगह न पाने वाले लोगों के पास होंगे क्या विकल्प –
- शेड्यूल ऑफ सिटिजनशिप के सेक्शन 8 के मुताबिक लोग एनआरसी में नाम न होने पर अपील कर सकेंगे। अपील के लिए समयसीमा को अब 60 से बढ़ाकर 120 दिन कर दिया गया है यानी 31 दिसंबर, 2019 अपील के लिए लास्ट डेट होगी। गृह मंत्रालय के आदेश के तहत करीब 400 ट्राइब्यूनल्स का गठन एनआरसी के विवादों के निपटारे के लिए किया गया है।
- केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि एनआरसी लिस्ट में जगह न पाने का यह अर्थ नहीं होगा कि ऐसे लोगों को विदेशी घोषित कर दिया जाएगा। ऐसे लोगों को फॉरेन ट्राइब्यूनल के समक्ष अपना केस पेश करना होगा। इसके अलावा राज्य सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि लिस्ट से बाहर रहने वाले लोगों को किसी भी परिस्थिति में हिरासत में नहीं लिया जाएगा। फॉरेन ट्राइब्यूनल्स का फैसला आने तक उन्हें छूट दी जाएगी।
- यदि कोई व्यक्ति ट्राइब्यूनल में केस हार जाता है तो फिर उसके पास हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प होगा। सभी कानूनी विकल्प आजमाने से पहले किसी को भी हिरासत में नहीं लिया जाएगा।
- असम सरकार ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई परिवार गरीब है और कानूनी जंग नहीं लड़ सकता है तो उसे मदद दी जाएगी। एनआरसी से बाहर रहने वाले मूल निवासियों की को सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी दलों ने मदद का भरोसा दिया है।
विदेशी घोषित किए गए तो क्या होगा?
यदि सभी कानूनी विकल्पों के बाद भी कोई विदेशी घोषित होता है तो ऐसे लोगों को सरकार डिटेंशन सेंटर्स में रखेगी। सभी कानूनी विकल्पों के बाद विदेशी घोषित लोगों को ही यहां रखा जाएगा। हालांकि ऐसे लोगों को किस तरह से भारत से बाहर किया जाएगा, इसे लेकर कोई स्पष्टता नहीं है। इसकी वजह यह है कि भारत के साथ बांग्लादेश का ऐसा कोई करार नहीं है, जिससे इन लोगों को वहां भेजा जा सके।
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