रक्षाबंधन के त्योहार का जितनी बेसब्री से इंतजार बहनों को होता है उतना अपनी कलाई पर राखी बंधवाने के लिए भाई भी बेकरार रहते हैं। इस त्योहार पर जहां बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा का धागा बांधकर उसके मंगल की कामना करती है, वहीं भाई भी बहन को उसकी सुरक्षा का वचन देता है। ये प्यार के बंधन का त्योहार आज से नहीं बल्कि सदियों से चला आ रहा है। लेकिन एक गांव ऐसा भी है जहां कभी मोहम्मद गोरी ने हमला किया था, उस हमले के बाद से इस गांव में कभी रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया गया और भाइयों की कलाई सूनी रहती है।
गाजियाबाद इस गांव का नाम है सुराना, यह गांव गाजियाबाद से करीब 30 किलोमीटर दूरी पर मोदीनगर इलाके में है। बताया जाता है कि यह गांव हजारों साल पहले से बसा हुआ है और हजारों साल से ही इस गांव में रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाया जाता। लेकिन रक्षा बंधन नहीं मनाने के पीछे भी बड़ी रोचक कहानी है।
दरअसल मान्यता है कि 12वीं सदी में मोहम्मद गोरी ने इस गांव पर कई बार आक्रमण किया। लेकिन जब वह इस गांव में आक्रमण करने आता था तो हर बार उसकी सेना अंधी हो जाती थी। उसे पस्त होकर वापस लौटना पड़ता था। इसके पीछे का कारण यह बताया जाता है कि इस गांव में एक देव रहते थे। वही पूरे गांव को सुरक्षित रखा करते थे। लेकिन रक्षाबंधन के त्योहार के दिन हिंदू धर्म में गंगा स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है। इसलिए रक्षाबंधन के दिन देव गंगा स्नान करने चले गए थे। इसकी सूचना गांव के ही एक मुखबिर ने मोहम्मद गोरी को दे दी कि आज देव गांव में नहीं है। इसी का फायदा उठाकर मोहम्मद गोरी ने इस गांव पर हमला बोल दिया और जितने भी लोग गांव के अंदर मौजूद थे सभी को हाथियों से कुचलवा दिया।
जब देव गांव में वापस लौटे तो उन्होंने सब तहस-नहस पाया, यानी गांव के अंदर कोई भी नहीं बचा था। लेकिन एक गर्भवती महिला बच गई थी क्योंकि वह अपने मायके अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधने गई हुई थी। तभी से इस पूरे गांव में रक्षाबंधन के त्यौहार को बेहद अशुभ माना जाता है और यहां के भाइयों की कलाई सूनी रहती है। बताया जाता है कि यहां की बहु अपने मायके अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती है, जबकि यहां की लड़कियां अपने भाई की कलाई पर राखी नहीं बांधती हैं। बुजुर्ग लोगों का कहना है कि उस हमले के बाद गांव फिर से आबाद हुआ लेकिन लोगों ने रक्षा बंधन मनाना बंद कर दिया और आज भी अगर बाहर जाकर भी बस गए हैं तो भी रक्षाबंधन के त्योहार को नहीं मनाते हैं।
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