भारत में खाने पीने की चीजों में मिलावटी, बेमेल ब्रांड और घटिया गुणवत्ता के मामले बढ़ते जा रहे हैं। तेल, घी, दूध, मावा, मिर्च मसाले, आटा, दाल और मटर सहित खाने पीने की लगभग हर चीज में मिलावट है। वहीं, कंपनियों के उत्पाद भी गुणवत्ता के पैमाने पर खरे नहीं उतर रहे हैं। खाद्य पदार्थों के 20 फीसदी से अधिक नमूने तय मानकों को पूरा नहीं करते हैं।
केंद्र सरकार के आंकड़े बताते हैं कि पिछले तीन साल में घटिया, मिलावटी और बेमेल पाए जाने वाले सामान की तादाद बढ़ी है। हालांकि, सरकार हर वर्ष बाजार से अधिक नमूने लेकर प्रयोगशालाओं में उनकी जांच करा रही है। सरकार बाजार से जितने अधिक नमूने जमा करती है, घटिया और मिलावटी भोजन के मामले इतने ही बढ़ते जा रहे हैं। मिलावटी खाने को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ)भी चिंता जता चुका है।
सालाना सवा चार लाख मौतें :
डब्ल्यूएचओ की विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस से पहले जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक मिलावटी और घटिया भोजन की वजह से दुनिया में हर साल चार लाख बीस हजार लोगों की मौत होती है। इसके साथ हर साल लगभग 60 करोड़ लोग मिलावटी खाना खाने से बीमार पड़ते हैं।
20 हजार नमूने फेल :
वर्ष 2018-19 मंत्रालय के पास सिर्फ 21 प्रदेशों के आंकड़े मौजूद हैं, पर इन प्रदेशों में भी बीस हजार से अधिक नमूने गुणवत्ता के पैमाने पर विफल हुए हैं। उपभोक्ता मंत्रालय के मुताबिक, वर्ष 2016-17 में 18,325 नमूने मानक के अनुरूप नहीं पाए गए थे। वहीं, 2017-18 में इनकी संख्या बढकर 24,264 हो गई। यह सभी आंकड़े सरकारी प्रयोगशालाओं के हैं।
मिलावट में यूपी सबसे आगे :
उत्तर प्रदेश से खाद्य पदार्थो के जमा किए गए नमूने सबसे अधिक फेल हुए हैं। वर्ष 2016-17 में 13567 में 5663 यानि 41 फीसदी नमूने अनुरूप नहीं पाए गए थे। इसके बाद 19063 में 8375 नमूने फेल हो गए। यह औसतन 44 प्रतिशत है। वर्ष 2018-19 में 19173 में से 9403 सैंपल फेल हो गए। यह विश्लेषित किए गए सैंपल का 49 फीसदी है।
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