राजधानी लखनऊ में गुरुवार को आरपीएफ (रेलवे पुलिस) ने लखनऊ में एक ऐसे गैंग का पर्दाफाश किया जो नाबालिग बच्चियों को नशे की लत लगवाकर उनसे जिस्म्फ़रोशी कराता था। आरपीएफ़ ने लखनऊ के बादशाहनगर रेलवे स्टेशन से गैंग के सरगना विजय बद्री उर्फ लंगड़ा (50) को गिरफ्तार करके इस रैकेट का पर्दाफाश किया। टीम ने उसके चंगुल से दो किशोर व दो लड़कियों को मुक्त कराया है। बाद में आरपीएफ ने पकड़े गए आरोपी व बच्चों को गाजीपुर पुलिस के हवाले कर दिया। पुलिस ने मुकदमा दर्ज करके विजय को गिरफ्तार कर लिया जबकि बच्चों को चाइल्ड हेल्प लाइन के हवाले किया गया है।
आरपीएफ के प्रभारी निरीक्षक एमके खान ने बताया कि गुरुवार सुबह करीब 6:30 बजे बादशाहनगर स्टेशन के चौकी इंचार्ज बंश बहादुर सिंह अपनी टीम के साथ प्लेटफार्म पर गश्त कर रहे थे। इस दौरान उनकी नजर दो नाबालिग लड़कों व लड़कियों पर पड़ी, जो पुलिस से छिपने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने पास जाकर पूछताछ की तो चारों रोने-बिलखने लगे। बच्चों ने कहा कि.. अंकल! हम लोग कहीं दूर जाना चाहते हैं, प्लीज हमें जाने दीजिए। एसआई बंश बहादुर सिंह को लगा कि चारों बच्चे घर से भागकर आए हैं, लिहाजा उन्हें चौकी ले आए। वहां दोबारा पूछताछ करने पर बच्चों ने जो आपबीती सुनाई, उससे आरपीएफ अधिकारियों के होश उड़ गए।
बच्चों ने बताया कि मुंशी पुलिया चौराहे के पास झोपड़-पट्टी में रहने वाले विजय उर्फ लंगड़ा ने उन्हें अपने चंगुल में फंसा रखा है। इसके लिए शुरुआत में विजय ने उन लोगों को नशे की डोज दी। जब वे लोग नशे के लती हो गए तो विजय उनसे मनमाफिक काम करवाने लगा। वह लड़कों से चोरी और लड़कियों से देह व्यापार करवाता था। इसके एवज में वह उन्हें अच्छे कपड़े, खाना और नशे की डोज देता था। अगर उनमें से कोई विरोध करता तो विजय पीट-पीटकर उनकी चमड़ी उधेड़ देता। बच्चों ने आरपीएफ अधिकारियों को बताया कि वे लोग विजय के डर से ही कहीं दूर भागना चाह रहे थे।
बच्चों से चोरी और जिस्मफरोशी कराने वाला विजय लंगड़ा खुद हाथ और पैर में पट्टी बांधकर लोहिया पथ पर भीख मांगता था। वह 1090 और समता मूलक चौराहे पर अक्सर देखा जाता था। आरोपी बच्चों के हाथ में ब्लेड से गहरे घाव बनाकर उनसे भी भीख मंगवाता था। पुलिस ने जिन दो लड़कों व लड़कियों को बरामद किया है, उनके हाथों पर घाव के निशान मिले हैं। आरपीएफ की हेड कांस्टेबल अर्चना मिश्रा ने पूछताछ की तो किशोरियों ने बताया कि दिन ढलते ही ग्राहक विजय को फोन करने थे। वह लोग कार से आते और विजय को दो से तीन हजार रुपये देकर उन्हें ले जाते थे।
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