हमारा गाज़ियाबाद अवैध कॉलोनियाँ बसाने के मामले में उत्तर प्रदेश में दूसरे नंबर पर है। आवास विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार यहां अब तक 321 कॉलोनियां बस चुकी हैं जिनमें लाखों घर अवैध रूप से बने हुए हैं। इस मामले में पहले नंबर पर वाराणसी हैं, वहां 366 अवैध कॉलोनियां हैं। बिल्डरों को मिलता राजनैतिक संरक्षण, निगरानी की कमी और सरकारी मशीनरी की अव्यवस्थाओं के चलते हमारा जिला धीरे-धीरे अनियोजित विकास की राह पर भटकता चला गया।
दरअसल, दिल्ली से सटा होने के कारण आवास बनाने की ख्वाहिश लोगों को यहां तक खींच पाई। यही वजह है कि एक दशक में 41.30 प्रतिशत की दर से जिले की आबादी बढ़ती चली गई। रहने के लिए लोगों ने इस शहर को ठिकाना बनाया। नौकरी करने के लिए बड़ी संख्या में लोग यहां से दिल्ली-एनसीआर के अन्य शहरों में जाते हैं। बिल्डरों ने लोगों की ख्वाहिश का भरपूर फायदा उठाते हुए अवैध कॉलोनियां काट दीं। धीरे-धीरे करके कॉलोनियों की संख्या 321 हो गई। इन कॉलोनियों में 20 लाख से ज्यादा आबादी रहती है।
अवैध कॉलोनियों में रजिस्ट्री पर रोक की व्यवस्था यहां नहीं है। ऐसा होता तो इतनी कॉलोनियों को बसने से रोकना आसान होता। जीडीए के प्रवर्तन प्रभारियों की कलम नोटिस और ध्वस्तीकरण के आदेश जारी करने की औपचारिकता तक ही सीमित रही है। पिछले 18 वर्षों में जीडीए ने आठों प्रवर्तन जोन में 10 हजार 817 अवैध निर्माण ध्वस्तीकरण के लिए चिह्नित किए गए। इनमें से 3258 अवैध निर्माण पर कार्रवाई की गई। 7559 अवैध इमारतों पर कार्रवाई नहीं हुई।
इनमें से ज्यादातर में लोग अपने परिवारों के साथ रह रहे हैं। इन इमारतों के निर्माण की गुणवत्ता क्या है? किसी को नहीं पता। जीडीए की सीमा के हर हिस्से में यह मकान और बहुमंजिला फ्लैट बने हुए हैं। जीडीए के तीन साल के रिकॉर्ड पर गौर करें तो वर्ष 2017-18 में 1255 चिह्नित अवैध निर्माण में से 219 पर कार्रवाई हुई। वर्ष 2018-19 में 842 अवैध निर्माण में से 333 पर कार्रवाई हुई।
जीडीए के विशेष कार्याधिकारी वी के सिंह का कहना है कि वर्तमान वर्ष में 163 अवैध निर्माण पाए गए। उनमें से महज पांच ध्वस्त हुए, 22 सील किए गए। जीडीए अपने स्तर से अवैध निर्माण तोड़ने की पूरी कोशिश कर रहा है। अवैध कॉलोनियों में रजिस्ट्री पर रोक का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था। उस पर निर्णय हो जाए, तभी अवैध निर्माण रोकना संभव है।
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