योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश में सिंगल यूज़ प्लास्टिक को पूरी तरह से बैन कर दिया है। “उत्तर प्रदेश प्लास्टिक और अन्य जीव अनाशित कूड़ा-कचरा (उपयोग और निस्तारण का विनियमन) (संशोधन) अधिनियम” द्वारा वर्ष 2018 में लगे इस प्रतिबंध के प्लास्टिक या पॉलिथीन बैग्स इस्तेमाल करने वालों पर भारी जुर्माने का प्रावधान है। इस अधिनियम के माध्यम से न सिर्फ पॉलिथीन बैग बल्कि थर्मोकोल के कप, गिलास और टंबलर आदि के उपयोग, विनिर्माण, विक्रय, वितरण, भंडारण, परिवहन और आयात-निर्यात को 2 अक्तूबर 2018 से पूर्णत: प्रतिबंधित कर दिया है।
भारी जुर्माना दे रहा है भ्रष्टाचार को बढ़ावा
अध्यादेश के अनुसार छोटे दुकानदारों पर 1 हजार से 25 हज़ार रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है तो होटलों, शैक्षिक संस्थाओं और औद्योगिक संस्थानों पर 25 हज़ार रुपए से लेकर 1 लाख रुपए तक जुर्माने के अलावा 6 महीने की सजा का भी प्रावधान है। प्लास्टिक व पॉलिथीन बैग्स के इस्तेमाल से पर्यावरण को हो रहे नुकसान को देखा जाए तो जुर्माने की राशि कुछ भी नहीं है। किन्तु, यही जुर्माना अब भ्रष्टाचार का कारक बन चुका है। स्थानीय निकायों के कर्मचारी ठेली-पटरी पर दुकान लगाने वाले छोटे दुकानदारों को जुर्माने का भय दिखाकर हफ्ता वसूली कर रहे हैं तो अधिकारी भी होटल और रेस्टोरेन्ट संचालकों यानि बल्क जेनेरेटरों से मोटी रकम ऐंठ रहे हैं।
एनजीओ के नाम पर भी हो रही है ठगी
प्रतिबंध लगने के बाद उत्तर प्रदेश में ऐसे अनेक एनजीओ (गैर सरकारी संस्थाएं) कुकुरमुत्तों की तरह उभर आई है जो प्लास्टिक री-साइकिलिंग से लेकर कम्पोस्ट खाद का प्लांट लगवाने के नाम पर बल्क जेनरेटरों के चक्कर लगा रहे हैं। जब हमने ऐसी ही कुछ एनजीओ के प्रतिनिधियों से बात की तो पता चला कि इनमें से ज़्यादातर एनजीओ, सत्ता से जुड़े चंद नेताओं और सरकारी अधिकारियों के रिश्तेदार चला रहे हैं। पहले ये नेता सरकारी अधिकारियों के माध्यम से प्रतिबंध का डर दिखाकर व्यापारियों और उद्यमियों को कम्पोस्ट/रिसाइकिलिंग प्लांट लगाने पर ज़ोर डालते हैं। उसके बाद एनजीओ के प्रतिनिधि व्यापारियों से मिलकर उन्हें अपने प्लांट और उत्पाद खरीदने के लिए दबाव डालते हैं।
बैन की वजह से 2000 कंपनियों का भविष्य अंधकार में
पर्यावरण के प्रति नेताओं और अदालतों की संवेदनशीलता सराहनीय है मगर क्या आपको मालूम है कि इस प्रतिबंध की वजह से अकेले उत्तर प्रदेश में ही 2,000 से अधिक छोटी-बड़ी कंपनियों का भविष्य अंधकार में चला गया है। उत्तर प्रदेश प्लास्टिक ट्रेड वैलफेयर एसोसिएशन के सदस्य गौरव जैन के अनुसार उत्तर प्रदेश में प्लास्टिक का सालाना व्यापार लगभग ₹100 बिलियन है और प्रदेश में पॉलिथीन की थैलियाँ बनाने की 2,000 से अधिक छोटी बड़ी इकाइयां है जिनसे लाखों लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी हुई है, इसके पॉलिथीन थैलियों की खरीद-फरोख्त से हजारों व्यापारी जुड़े हुए हैं। यदि हम सड़कों से प्लास्टिक की थैलियाँ और बोतलें बीन कर उन्हें रिसाइकिल प्लांटों तक पहुंचाने वालों को भी शामिल कर लें तो यह संख्या कई गुना बढ़ जाएगी।
गिने चुने व्यापारियों पर हो रही है कार्यवाही
अगर हम गाज़ियाबाद की बात करें तो यहाँ पॉलिथीन की थैलियों और प्लास्टिक पर लगे इस प्रतिबंध का सबसे ज्यादा असर शहर के कुछ प्रतिष्ठित कारोबारियों पर ही पड़ रहा है जबकि प्लास्टिक और पॉलिथीन के बड़े व्यापारी नेताओं और अधिकारियों के संरक्षण में खुलकर व्यापार कर रहे हैं। शहर में एक प्रसिद्ध रेस्टोरेन्ट चेन चला रहे एक व्यवसायी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पिछले 1 महीने के दौरान नगर निगम और स्थानीय प्रशासन के अधिकारी 4-5 बार छापा मार कर लाखों रुपए जुर्माना ठोक चुके हैं जबकि घंटाघर, चौपला मंदिर, रमते राम रोड और बजरिया जैसे इलाकों में प्लास्टिक की थैलियों का धंधा बिना किसी रोक-टोक के चल रहा है।
क्या है प्लास्टिक और पॉलिथीन की समस्या का इलाज?
केंद्र और राज्य सरकारों को चाहिए कि अचानक प्रतिबंध लगाकर रातों-रात लाखों लोगों की रोजी-रोटी छिनने से पहले वह एक समयबद्ध तरीके से ऐसे उद्योगों को प्रोत्साहन दे जहां प्लास्टिक व पॉलिथीन का विकल्प तैयार हो। एसोसिएशन ऑफ फूड ऑपरेटर्स के महासचिव संजय मित्तल का कहना है कि खाद्य व्यवसाय और विशेषकर रेस्टोरेन्ट आदि में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक के कंटेनरों के अभी व्यावहारिक विकल्प उपलब्ध नहीं है। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि रसगुल्ले, तैयार सब्जियाँ और चाट-पकौड़ी आदि बहुत से उत्पादों को प्लास्टिक कंटेनरों में देना व्यवसायियों की मजबूरी है। इसी प्रकार ब्रेड, बिस्किट और पाव आदि बेकरी उत्पाद पॉलिथीन की थैलियों में ही सुरक्षित रह सकते हैं।
एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल गुप्ता ने बताया कि पर्यावरण के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी किसी अन्य से कम नहीं है, मगर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लगाए गए इस प्रतिबंध के बाद व्यापारियों को इस तरह से देखा जा रहा है मानों हम पर्यावरण के दुश्मन नंबर वन हों। उन्होंने कहा कि कूड़े-कचरे की रिसाइलिंग और प्लास्टिक वेस्ट का पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन करने की ज़िम्मेदारी नगर निगम या नगर पालिका जैसे स्थानीय निकायों की है। उद्यमी और व्यापारी वेस्ट मैनेजमेंट में स्थानीय निकायों की मदद तो कर सकते हैं, मगर सरकारी अधिकारी नेताओं की गुड बुक में आने और अदालत के प्रकोप से बचने के लिए सारी ज़िम्मेदारी उद्यमियों और व्यापारियों पर डाल कर उनका शोषण नहीं कर सकते हैं।
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