पब्लिक ट्रांसपोर्ट में खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं लड़कियां

एक ओर जहाँ महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। वहीं आज भी देशभर में कई लड़कियां खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं। ज्यादा दूर नहीं हम दिल्ली-एनसीआर की ही बात करें तो एक शोध के जरिये यह बात सामने आई है कि यहाँ 45 फीसदी शहर की लड़कियां और 40 फीसदी गांव की लड़कियां पब्लिक ट्रांसपोर्ट में खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं।

दरअसल, लड़कियों की इस मानसिकता का कारण यह है कि सफर के दौरान इन सार्वजनिक परिवहन में उन्हें अभद्र भाषा, घूरना, सीटी बजाना और छेड़छाड़  उत्पीड़न जैसी कई परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। पब्लिक बसों में ज्यादातर दबंग व बिगडैल लड़के गैंग बनाकर चलते हैं। इन्हें कोई रोकने-टोकने वाला भी नहीं होता। ऐसा नहीं कि बदसलूकी पर लड़कियां इन्हें जवाब नहीं देती। असल बात यह है कि उनका कोई साथ नहीं देता।

हालाँकि हर बस में कुछ सीटें लेडीज के लिए रिजर्व होती हैं। लेकिन इनमें अक्सर लड़कों का ही कब्जा रहता है। बस भरी हो तब तो यह दिक्कत ज्यादा होती है। ये लोग सीट छोड़ने को तैयार नहीं होते और कंडक्टर, ड्राइवर भी सब कुछ देखते हुए अनदेखा करते हैं। जब बस में खड़े होने की काफी जगह होती है तब भी लड़कियों को धक्का मारने वालों की कमी नहीं हैं। कई बार तो बस के कंडक्टर ही बदसलूकी पर उतर आते हैं।

पब्लिक ट्रांसपोर्ट सस्ता, जल्दी पहुंचाने वाला व सुरक्षित विकल्प है। इसलिए ज्यादातर लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। लेकिन लड़कियों के साथ बढ़ती घटनाओं को सुनकर यह असुरक्षा जायज़ भी है। इसलिए पब्लिक बस से लेकर ऑटो- टैक्सी में भी महिलाओं की सुरक्षा पर खास ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

 

 

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