वसंत पंचमी है महान विभूतियों का स्मृति पर्व, इस्लाम न कबूल करने पर हुई थी 14 वर्षीय वीर हकीकत राय की हत्या

वसंतोत्सव भारत की सर्वाधिक प्राचीन और सशक्त परम्पराओं में से एक है। सद्ज्ञान, उल्लास, प्रेम, उमंग और उत्साह के समन्वय के इस रंगबिरंगे पर्व का अभिनंदन प्रकृति अपने समस्त श्रृंगार के साथ करती है। ऋतुराज वसंत के स्वागत में प्रकृति का समूचा सौंदर्य निखर उठता है।ऋतु पर्व होने के साथ-साथ यह महान विभूतियों का स्मृति पर्व भी है। वसंत पंचमी के दिन ही पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को मौत के घाट उतार दिया था। अमर शहीद वीर बलिदानी बाल हकीकत राय का इतिहास भी वसंत पंचमी से जुड़ा है। वसंत पंचमी के दिन ही वीर हकीकत राय द्वारा इस्लाम स्वीकार नहीं करने के कारण उनका सिर धड़ से अलग कर दिया गया था।

वसंत ऋतु का शुभारम्भ बसंतपंचमी से होता है और होलिकोत्सव पर उल्लास की चरम परिणति के साथ वंसतोत्सव का आनन्द परिपूर्ण होता है। चूंकि वसंत ऋतु का मौसम अपने आप में एक अजब-सी खुमारी लिए होता है। इस अवधि में मन में काम भाव प्रेम की उमंगें जागृत होती हैं। नयी आशाओं एवं कामनाओं का जन्म होता है। ऐसे कामोद्दीपक काल में हमारे मनों में उमड़ती भावनाएं अनियंत्रित- उच्श्रृंखल न हों, उन पर विवेक का अंकुश लगा रहे, सम्भवत: इसलिए हमारे मनीषियों ने इस पर्व पर ज्ञान व विवेक की देवी मां सरस्वती की आराधना का विधान बनाया। प्राचीनकाल से आज तक वसंत का यही तत्वदर्शन भारत की देवभूमि को अपनी भावधारा से आबाध रूप से सिंचित करता आ रहा है।

देश के जाने माने आध्यात्मिक विचारक व मनीषी डॉ. प्रणव पांड्या जी कहते हैं, ‘’जहां एक ओर सरस्वती विलुप्त नदी के रूप में भारत की गौरवशाली जन संस्कृति की प्रतीक हैं तो दूसरी ओर हमारी देवभूमि की सांस्कृतिक चेतना के विकास की भी। ज्ञान-ध्यान, संयम व विवेक के साथ सरस्वती पूजन का यह पर्व कला संस्कृति के रूप में जनमानस की आध्यात्मिक जिज्ञासा की प्यास तो बुझाता ही है, हर्षोल्लास के साथ मन की कोमल भावनाओं को भी तरंगित करता है।‘’

वसंतपंचमी से जुड़े ऐतिहासिक शौर्य प्रसंग
वसंत पंचमी का पावन दिन जहां हमें ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती के विशेष पूजन अर्चन के लिये प्रेरित करता है वहीं यह पर्व भारतमाता के कई महान रणबांकुरे वीरों के शौर्य व बलिदान को भी नमन करता है।

यह ऋतु पर्व विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारी मोहम्मद गोरी को 16 बार पराजित कर उदारता दिखाते हुए हर बार जीवनदान दे देने वाले हिन्द शिरोमणि पृथ्वीराज चौहान के शौर्य व बलिदान से जुड़ा है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 16 बार हारने के बाद जब सत्रहवीं बार मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को छल के पराजित कर बंदी बनाकर काबुल (अफगानिस्तान) की जेल में डालकर उन पर बर्बर अत्याचार करते हुए उनकी आँखे फुड़वा दीं पर उनके हौसलों को नहीं डिगा पाया। कैदखाने में पृथ्वीराज की दयनीय हालत देखकर उनके अनन्य मित्र चंद्रबरदाई के हृदय को गहरा आघात लगा और उन्होंने पृथ्वीराज के साथ मंत्रणा कर गोरी से बदला लेने की पूरी योजना बना ली। योजना के तहत चंद्रबरदाई ने मोहम्मद गोरी के सामने प्रस्ताव रखा कि उनके सम्राट शब्दभेदी बाण चलाने में पारंगत हैं। नेत्रहीन होने के बाद भी आप उनकी इस क्षमता का प्रदर्शन भरे दरबार में देख सकते हैं। गोरी को उसकी बात पर भारी आश्चर्य हुआ और वह पृथ्वीराज का कौशल देखने को तैयार हो गया। सभी प्रमुख ओहदेदारों व नागरिकों को आयोजन में आमंत्रित किया गया। निश्चित तिथि को दरबार लगा और गोरी एक ऊंचे स्थान पर अपने मंत्रियों के साथ बैठ गया।

चूंकि पृथ्वीराज की आंखें निकाल दी गयी थीं, अत: उनको नियत स्थान पर लाकर उनकी बेड़ियां खोल उनके हाथों में धनुष बाण थमा दिया गया। पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार ज्यों ही चंद्रबरदाई ने पृथ्वीराज का गुणगान करते हुए गोरी के बैठने के स्थान को चिन्हित करते हुए यह पंक्तियां उच्चारित कीं- ‘’चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, चूको मत चौहान।‘’

पृथ्वीराज को गोरी की दिशा मालूम हो गयी और उन्होंने तुरंत बिना एक पल की भी देरी किये अपने एक ही बाण से गोरी को मार गिराया। चारों ओर भगदड़ और हाहाकार मच गया, इस बीच पृथ्वीराज और चंद्रबरदाई ने पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार एक-दूसरे को कटार मारकर अपने प्राण त्याग दिये।

इसी तरह लाहौर निवासी वीर बालक हकीकत राय का भी बसंत पंचमी का गहरा संबंध है। कहते हैं कि एक दिन मदरसे में पढ़ाई के दौरान जब कुछ देर के लिए शिक्षक कक्षा से बाहर गये तो हकीकत को छोड़ बाकी बच्चे शोरगुल मचाते हुए खेलने लगे। किसी बात पर कक्षा के मुस्लिम बच्चों ने दुर्गा मां की हंसी उड़ा दी। इस पर हकीकत को क्रोध आ गया और उसने कहा कि ‘यदि में तुम्हारी बीबी फातिमा के बारे में कुछ कहूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा?’ फिर क्या था, मुल्ला शिक्षक के वापस आते ही उन शरारती छात्रों ने शिकायत कर दी कि हकीकत ने फातिमा बीबी को गाली दी है।

बात बढ़ते हुए काजी तक जा पहुंची। मुस्लिम शासन में वही निर्णय हुआ, जिसकी अपेक्षा थी। आदेश हुआ कि हकीकत इस्लाम कबूल करे या मृत्युदंड। हकीकत ने मुसलमान बनना स्वीकार नहीं किया। परिणामत: उसे तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया। कहते हैं उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ से तलवार गिर गयी। हकीकत ने तलवार उसके हाथ में दी और कहा कि ‘जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं, तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो और वीर हकीकत राय वसंत पंचमी के दिन स्वधर्म के लिये बलिदान हो गये।’

कहां -कहां पर स्थित है वीर हकीकत राय की समाधि
1947 में भारत के विभाजन से पहले हिंदू बसंत पंचमी का त्योहार लाहौर स्थित उनकी समाधि पर श्रद्धांजलि देकर मनाते थे। विभाजन के बाद उनकी एक और समाधि होशियारपुर जिले के ब्योलि के बाबा भंडारी में स्थित है। लोग यहां एकत्रित होकर उन्हें श्रद्धा सुमन देकर इस त्योहार को मनाते है। गुरदासपुर जिले के बटाला में में हकीकत राय को समर्पित एक मंदिर स्थित है। इसी शहर में वीर हकीकत राय की पत्नी लक्ष्मी देवी को समर्पित एक समाधि भी है।

वसंत पंचमी पर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पुरोधा व आजादी की अलख सबसे पहले जगाने वाले सतगुरु राम सिंह जी का जन्म दिन भी मनाया जाता है। उन्होंने गौहत्या एवं अंग्रेजों के शासन के विरुद्ध आवाज उठाई थी। भारत के अमर सपूत भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ‘मेरा रंग दे वसंती चोला’ कहते हुए भारत माता की आजादी की इच्छा से फांसी के फंदे पर झूल गए।

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