उमा भारती ने किए दना-दन 41 ट्वीट, बताया कैसे उनसे गंगा मंत्रालय ले लिया गया था वापस

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नई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने रविवार को लगातार 41 ट्वीट किए जिसमें बताया कि कैसे उनसे गंगा मंत्रालय वापस ले लिया गया। साथ ही बताया कि कौन उनके साथ उस वक्त खड़ा रहा।

उन्होंने ट्वीट किया, आज देवशयनी एकादशी है, भगवान विष्णु ने अपना समस्त कार्यभार महादेव को सौंपा। और अब महादेव अपनी सम्पूर्ण शक्तियों के साथ देवोत्थान एकादशी तक ब्रम्हाण्ड की रक्षा करेंगे। पिछली दोनों कोरोना की लहरों में मैं कोरोनाग्रस्त हो जाने के कारण थोड़ा अस्वस्थ रही हूं। ऐसे में यदि मैं अपने मन की बात न कह पाऊं व अपने निर्धारित लक्ष्य पर न चलूं तो मुझे घुटन होती है और मेरी अस्वस्थता और बढ़ती है। मैं गुरू पूर्णिमा से अब तक के जीवन के बारे में आपको बहुत ही शॉर्ट में पोस्ट करूंगी।

आगे ट्वीट में लिखा कि, मुझसे दो बहुत बड़े पब्लिकेशंस ने मेरी जीवनी पर किताब छापने की अनुमति मांगी थी किन्तु मैंने सहमति नहीं दी। मैं एक अति सामान्य व्यक्ति हूं, ऐसा कुछ विशेष है ही नहीं कि कोई किताब लिखी जाए। जो मेरे जीवन में असाधारण घटा है वह तो भगवान वह आप सबकी कृपा है। लेकिन मुझे लगा कि गंगा सागर से चलकर किसी शराब की दुकान के सामने मैं हाथ में गाय का गोबर लेकर क्यों खड़ी हो गई, यह तो आप सबको बताऊं।

उन्होंने आगे लिखा- तब तो मुझे पूरे जीवन का वृत्त ही संक्षेप में बताना पड़ेगा। किताब लिखने की जगह मेरे अपने दफ्तर के ही एक सहयोगी को डिक्टेशन दूंगी और अपने पूरे जीवन का वृत्तांत आपको पोस्ट करूंगीं। उसमें शब्द, भाषा, कॉमा, फुल स्टॉप भी मेरे होंगे। प्रिंट मीडिया एवं टेली मीडिया दोनों से मेरा एक निवेदन है कि आप सिर्फ मेरे पोस्ट पढ़ते रहिए।

मेरे शब्द व वाक्य को ज्यों का त्यों रखते हुए आप अपने विचार व टिप्पणी देने हेतु अपने अधिकार का पूरा प्रयोग करें। कुछ विशेष प्रसंग मैं आज की ही पोस्ट में बताती हूं। गंगा की अविरलता पर दिया गया मेरे मंत्रालय का एफिडेविट सरकार द्वारा लिए गए निर्णय के विपरीत था। ऊर्जा, पर्यावरण एवं मेरे जल संसाधन मंत्रालय की एक कमेटी बनी जिसमें तीनों को मिलाकर गंगा पर प्रस्तावित पॉवर प्रोजेक्ट पर एफिडेविट बनाना था। फिर कैबिनेट सेक्रेटरी और पीएमओ की सहमति के बाद हमारे मंत्रालय के माध्यम से वह सुप्रीम कोर्ट में पेश होना था।

तीनों मंत्रालयों की गंगा की अविरलता पर सहमति नहीं बन पा रही थी। विश्व के, भारत के सभी पर्यावरण विशेषज्ञों की राय व अरबों गंगा भक्तों की आस्था दांव पर लगी थी। उन सबकी राय में हिमालय, गंगा एवं उसकी सहयोगी नदियों पर प्रस्तावित 72 पॉवर प्रोजेक्ट गंगा, हिमालय और पूरे भारत के पर्यावरण के लिए संकट का विषय थे। मैंने और मेरे गंगा निष्ठ सहयोगी अधिकारियों ने बिना किसी से परामर्श किए कोर्ट में एफिडेविट प्रस्तुत कर दिया। उस एफिडेविट पर ऊर्जा एवं पर्यावरण मंत्रालय और उत्तराखंड की त्रिवेंद्र रावत जी की सरकार ने अपनी असहमति दर्ज की। फिर कोर्ट ने तुरंत केंद्र सरकार से परामर्श करके उस एफिडेविट को अमान्य कर दिया।

उन्होनें लिखा- वह तो आज भी कोर्ट की सम्पत्ति है और शायद केंद्र की सरकार उसके विपरीत नया एफिडेविट पेश नहीं कर पाई है। स्वाभाविक है कि मैंने अनुशासनहीनता की, मुझे तो मंत्रिमंडल से बर्खास्त भी किया जा सकता था, लेकिन गंगा की अविरलता तो बच गई। गृहमंत्री अमित शाह जो हमारे उस समय के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, वह गंगा की अविरलता के पक्ष में हमेशा रहे। उन्हीं के हस्तक्षेप से मुझे निकाला नहीं गया, किंतु विभाग बदल दिया गया, इतना तो होना ही था।

विभाग नितिन गडकरी के पास पहुंचा और उन्होंने मुझे कभी गंगा से अलग नहीं किया। मुझे गंगा से जोड़े रखने की राह वह निकालते रहे जिस पर अमित शाह का भी समर्थन रहा। अमित जी अब केंद्र में गृहमंत्री हैं किन्तु तब वह पार्टी के अध्यक्ष थे और उन्हीं की बात मानकर मैंने 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा था।

ट्वीट की श्रंखला में उन्होंने लिखा- हरियाणा की घटना तो सर्वविदित है। जो घटने वाला था वह पीएम मोदी और सीएम मनोहर लाल खट्टर जैसे तपोनिष्ठ व्यक्ति की गंगा जैसी जीवन धारा में गंदे नाले की तरह मिलने वाला था।

मैं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थी, पार्टी अनुशासन का तकाजा था कि मैं दिल्ली आकर राष्ट्रीय अध्यक्ष से अपनी आपत्ति व्यक्त करती। किन्तु इतना समय नहीं था, मैं गंगा यात्रा पर उत्तरकाशी और गंगोत्री के बीच में थी और यह व्यक्ति किराए के जहाज से दिल्ली पहुंच चुका था। तो जो रास्ता बचा था, मैंने विरोध करते हुए ट्वीट कर दिया। और आपकी ‘‘राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने ऐसा कहा है‘‘ इस उल्लेख के साथ मीडिया में जो बहस का धमाका हुआ उससे पार्टी को अपना निर्णय बदलना पड़ा।

उमा भारती ने लिखा- हरियाणा में हमारी सरकार भी बन गई और पार्टी की साख भी बच गई। फिर तो जो होना था वही हुआ। अनुशासनहीनता तो की ही थी और इसीलिए जब नई राष्ट्रीय कार्यसमिति घोषित हुई तो मैं उसमें सदस्य तो थी किंतु पदाधिकारी नहीं थी, लेकिन मुझे कोई रंज ही नहीं है। मेरे नेता पीएम नरेंद्र मोदी ही हैं और रहेंगे। जगत प्रकाश नड्डा हमारे संगठन के मुखिया होने के नाते मेरे लिए भी आदरणीय हैं।

अब मध्य प्रदेश में शराब के खिलाफ मैंने मुहिम छेड़ी है जो कि पार्टी की नीति के अनुसार है और भाजपा शासित राज्यों में एक जैसी शराब नीति हो, यह मेरा आग्रह है। मैं गुरू पूर्णिमा से रक्षा बंधन तक अपने जन्म से लेकर अभी तक के सभी महत्वपूर्ण प्रसंग आपसे शेयर करूंगी। इसीलिए सभी से अनुरोध है कि आप उसे मेरे जीवन का रिपोर्ट कार्ड मानकर पढ़ लेने का समय निकालें।

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